Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-150 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৫০ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৬৩
মরণাদিরূপ ছিদ্রোনা দোষথী রহিত ছে. শরীর তো মল-মূত্রাদি নরকথী ভরেলুং ছে অনে ভগবান
শুদ্ধ আত্মা ভাবকর্ম, দ্রব্যকর্ম অনে নোকর্মনা মলথী রহিত ছে.
অহীং, আ ভাবার্থ ছে কে আ প্রমাণে দেহ অনে আত্মানো ভেদ জাণীনে, দেহনুং মমত্ব
ছোডীনে অনে বীতরাগনির্বিকল্প-সমাধিমাং স্থিত থঈনে নিরংতর ভাবনা (আত্মভাবনা)
করবী জোঈএ. ১৪৯.
হবে, ফরী দেহনী মলিনতা দর্শাবে ছে :
पूरितम् एवं ज्ञात्वा किम् किज्जइ अणुराउ कथं क्रियते अनुरागो न कथमपीति
तद्यथायथा नरकगृहं शतजीर्णं तथा कायगृहमपि नवद्वारछिद्रितत्वात् शतजीर्णं, परमात्मा
तु जन्मजरामरणादिच्छिद्रदोषरहितः कायस्तु गूथमूत्रादिनरकपूरितः, भगवान् शुद्धात्मा तु
भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्ममलरहित इति अयमत्र भावार्थः एवं देहात्मनो भेदं ज्ञात्वा
देहममत्वं त्यक्त्वा वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा च निरन्तरं भावना कर्तव्येति ।।१४९।।
अथ
२८१) दुक्खइँ पावइँ असुचियइँ ति-हुयणि सयलइँ लेवि
एयहिँ देहु विणिम्मियउ विहिणा वइरु मुणेवि ।।१५०।।
दुःखानि पापानि अशुचीनि त्रिभुवने सकलानि लात्वा
एतैः देहः विनिर्मितः विधिना वैरं मत्वा ।।१५०।।
छिद्र आदि दोष रहित है, भगवान् शुद्धात्मा भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्ममलसे रहित हैं, यह शरीर
मल
मूत्रादि नरकसे भरा हुआ है ऐसा शरीरका और जीवका भेद जानकर देहसे ममता छोड़के
वीतराग निर्विकल्प समाधिमें ठहरके निरन्तर भावना करनी चाहिये ।।१४९।।
आगे फि र भी देहकी मलिनता दिखलाते हैं
गाथा१५०
अन्वयार्थ :[त्रिभुवने ] तीन लोकमें [दुःखानि पापानि अशुचीनि ] जितने
दुःख है, पाप हैं, और अशुचि वस्तुयें हैं, [सकलानि ] उन सबको [लात्वा ] लेकर
[एतैः ] इन मिले हुओंसे [विधिना ] विधाताने [वैरं ] वैर [मत्वा ] मानकर [देहः ] शरीर
[निर्मितः ] बनाया है