Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-153 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৫২ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৬৭
‘‘चंडो ण मुयइ वेरं भंडणसीलो य धम्मदयरहिओ दुट्ठो ण य एदि वसं लक्खणमेयं तु
किण्हस्स ।।’’ (গোম্মটসার জীবকাংড গাথা৫৭৮)
(অর্থ:জে প্রচংড তীব্র ক্রোধী হোয, বেরনে ছোডে নহি, ঝঘডো করবানা স্বভাববালো
হোয, দযাধর্মথী রহিত হোয, দুষ্ট হোয, গুরুজনাদিনে বশ ন হোযএ বধাং লক্ষণ
কৃষ্ণলেশ্যাবালা জীবনাং ছে) এ প্রমাণে গাথামাং কহেল লক্ষণবালী কৃষ্ণলেশ্যা, ধনধান্যাদিনী
তীব্র মূর্চ্ছারূপ অনে বিষযোনী আকাংক্ষারূপ নীললেশ্যা, রণভূমিমাং মরবা ইচ্ছে অনে কোঈ
স্তুতি করে তো সংতোষ পামে বগেরে লক্ষণোবালী কাপোতলেশ্যা
এ প্রমাণে ত্রণ (অশুভ)
লেশ্যাথী মাংডীনে সমস্ত বিভাবনা ত্যাগ বডে দেহথী ভিন্ন আত্মানে তুং ভাব. ১৫২.
হবে, ফরী দেহনে দুঃখনুং কারণ দর্শাবে ছে :
पूर्वोक्त लक्षणमात्मानं त्वं कर्ता पश्येति अयमत्र भावार्थः ‘‘चंडो ण मुयइ वेरं भंडणसीलो
य धम्मदयरहिओ दुट्ठो ण य एदि वसं लक्खणमेयं तु किण्हस्स ।।’’ इतिगाथाकथितलक्षणा
कृष्णलेश्या, धनधान्यादितीव्रमूर्च्छाविषयाकांक्षादिरूपा नीललेश्या, रणे मरणं प्रार्थयति स्तूयमानः
संतोषं करोतीत्यादिलक्षणा कापोतलेश्या च, एवं लेश्यात्रयप्रभृतिसमस्तविभावत्यागेन
देहाद्भिन्नमात्मानं भावय इति
।।१५२।।
अथ
२८४) दुक्खहँ कारणु मुणिवि मणि देहु वि एहु चयंति
जित्थु ण पावहिँ परम-सुहु तित्थु कि संत वसंति ।।१५३।।
हँसी उड़ानेमें जिसके शंका न हो, अपनी हँसी होनेका जिसको भय न हो, जिसका
स्वभाव लज्जा रहित हो, दया
धर्मसे रहित हो, और अपनेसे बलवान्के वशमें हो,
गरीबको सतानेवाला हो, ऐसा कृष्णलेश्यावालेका लक्षण कहा नीललेश्यावालेके लक्षण
कहते हैं, सो सुनोजिसके धनधान्यादिककी अति ममता हो, और महा विषयाभिलाषी
हो, इन्द्रियोंके विषय सेवता हुआ तृप्त न हो कापोतलेश्याका धारक रणमें मरना चाहता
है, स्तुति करनेसे अति प्रसन्न होता है ये तीनों कुलेश्याके लक्षण कहे गये हैं, इनको
छोड़कर पवित्र भावोंसे देहसे जुदे जीवको जानकर अपने स्वरूपका ध्यान कर यही
कल्याणका कारण है ।।१५२।।
आगे फि र भी देहको दुःखका कारण दिखलाते हैं