Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৭০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৫৪
নদীওথী সমুদ্র তৃপ্ত থতো নথীে, অতৃপ্তিকর ছে এম জাণীনে ভোগোনা সুখনে ছোডীনে অনে
‘‘एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होदि णिच्चमेदम्हि एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सुक्खं ।।’’ (শ্রী
সমযসার গাথা ২০৬). (অর্থ:হে ভব্য প্রাণী! তুং আত্মামাং (জ্ঞানমাং) নিত্য রত অর্থাত্
প্রীতিবালো থা, আমাং নিত্য সংতুষ্ট থা অনে আনাথী তৃপ্ত থা; (আম করবাথী) তনে উত্তম সুখ
থশে.) এ প্রমাণে গাথাথী কহেল লক্ষণবালা অধ্যাত্মসুখমাং স্থিত থঈনে ভাবনা (আত্মভাবনা)
করবী, এবুং তাত্পর্য ছে. বলী কহ্যুং পণ ছে কে
‘‘तिण क ट्ठेण व अग्गी लवणसमुद्दो णदीसहस्सेहिं
ण इमो जीवो सक्को तिप्पेदुं कामभोगेहिं ।।’’ (অর্থ:জেবী রীতে তৃণ, কাষ্ঠ আদি ইন্ধনথী অগ্নি
শাংত থতো নথী, হজারো নদীওনা পাণীথী লবণসমুদ্র ছলকাতো নথী তেবী রীতে আ জীব
কামভোগোথী তৃপ্ত থঈ শকতো নথী).
অধ্যাত্মশব্দনী ব্যুত্পত্তি করবামাং আবে ছে‘‘মিথ্যাত্ব, বিষয, কষাযাদি বাহ্য
পদার্থোনা নিরালংবপণে (আলংবন বিনা) আত্মামাং অনুষ্ঠান (করবুং, টকবুং, প্রবর্তবুং) তে অধ্যাত্ম
ছে. ১৫৪.
হবে, জ্ঞান আত্মানো স্বভাব ছে, এম দর্শাবে ছে :
भोगसुखं त्यक्त्वा ‘‘एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होदि णिच्चमेदम्हि एदेण होहि तित्तो
होहदि तुह उत्तमं सुक्खं ।।’’ इति गाथाकथितलक्षणे अध्यात्मसुखे स्थित्वा च भावना
कर्तव्येति तात्पर्यम्् तथा चोक्त म््‘‘तिणकट्ठेण व अग्गी लवणसमुद्दो णदीसहस्सेहिं
ण इमो जीवो सक्को तिप्पेदुं कामभोगेहिं ।।’’ अध्यात्मशब्दस्य व्युत्पत्तिः क्रियते
मिथ्यात्वविषयकषायादिबहिर्द्रव्ये निरालम्बनत्वेनात्मन्यनुष्ठानमध्यात्मम् ।।१५४।।
अथात्मनो ज्ञानस्वभावं दर्शयति
तृप्त नहीं होता है ऐसा ही समयसारमें कहा है, कि हंस (जीव) तू इस आत्मस्वरूपमें ही
सदा लीन हो, और सदा इसीमें संतुष्ट हो इसीसे तू तृप्त होगा और इसीसे ही तुझे उत्तम सुखकी
प्राप्ति होगी इस कथनसे अध्यात्मसुखमें ठहरकर निजस्वरूपकी भावना करनी चाहिये, और
कामभोगोंसे कभी तृप्ति नहीं हो सकती ऐसा कहा भी है, कि जैसे तृण, काठ आदि ईंधनसे
अग्नि तृप्त नही होती और हजारों नदियोंसे लवणसमुद्र तृप्त नहीं होता, उसी तरह यह जीव काम
भोगोंसे तृप्त नहीं होता
इसलिये विषयसुखोंको छोड़कर अध्यात्मसुखका सेवन करना
चाहिये अध्यात्मशब्दका शब्दार्थ करते हैंमिथ्यात्व विषय कषाय आदि बाह्य पदार्थोंका
अवलम्बन (सहारा) छोड़ना और आत्मामें तल्लीन होना वह अध्यात्म है ।।१५४।।
आगे आत्माका ज्ञानस्वभाव दिखलाते हैं