Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৭২ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৫৬
ভাবার্থ: — জ্ঞানাবরণাদি আঠ কর্মরূপী জলচর জীবোথী ব্যাপ্ত (ভরেল)
সংসারসাগরমাং, নির্বিষয অনে নিষ্কষাযরূপ (বিষযকষাযরহিত) শুদ্ধ আত্মতত্ত্বথী প্রতিপক্ষভূত
বিষযকষাযরূপ মহাবাত বডে জে ভব্যবর পুংডরিকনুং মনরূপী প্রচুর জল ক্ষোভ পামতুং নথী, তেনুং
অনাদিকালরূপ মহাপাতালমাং পডেলুং আত্মরূপী রত্নবিশেষ রাগাদি মলনা ত্যাগ বডে শীঘ্র
নির্মল থায ছে. হে বত্স! মাত্র নির্মল থায ছে এটলুং জ নহি পণ, শুদ্ধাত্মানে পরম
কহেবামাং আবে ছে তে পরমনী কলা-অনুভূতি তে পরম কলা, তে পরমকলারূপী দ্রষ্টি বডে জ জে
२८७) विसय-कसायहिँ मण-सलिलु णवि डहुलिज्जइ जासु ।
अप्पा णिम्मलु होइ लहु वढ पच्चक्खु वि तासु ।।१५६।।
विषयकषायैः मनःसलिलं नैव क्षुभ्यति यस्य ।
आत्मा निर्मलो भवति लघु वत्स प्रत्यक्षोऽपि तस्य ।।१५६।।
विसय इत्यादि । विसय-कसायहिं मण-सलिलु ज्ञानावरणाद्यष्टकर्मजलचराकीर्णसंसार-
सागरे निर्विषयकषायरूपात् शुद्धात्मतत्त्वात् प्रतिपक्षभूतैर्विषयकषायमहावातैर्मनः प्रचुरसलिलं
णवि डहुलिज्जइ नैव क्षुभ्यति जासु यस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य अप्पा णिम्मलु होइ लहु
आत्मा रत्नविशेषोऽनादिकालरूपमहापाताले पतितः सन् रागादिमलपरिहारेण लघु शीघ्रं
निर्मलो भवति । वढ वत्स । न केवलं निर्मलो भवति पच्चक्खु वि शुद्धात्मा परम
इत्युच्यते तस्य परमस्य कला अनुभूतिः परमकला एव द्रष्टिः परमकलाद्रष्टिः तया
गाथा – १५६
अन्वयार्थ : — [यस्य ] जिसका [मनः सलिलं ] मनरूपी जल [विषयकषायैः ]
विषयकषायरूप प्रचंड पवनसे [नैव क्षुभ्यते ] नहीं चलायमान होता है, [तस्य ] उसी भव्य
जीवकी [आत्मा ] आत्मा [वत्स ] हे बच्चे, [निर्मलो भवति ] निर्मल होती है, और [लघु ]
शीघ्र ही [प्रत्यक्षोऽपि ] प्रत्यक्ष हो जाती है ।
भावार्थ : — ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मरूपी जलचर मगर – मच्छादि जलके जीव उनसे
भरा जो संसार – सागर उसमें विषयकषायरूप प्रचंड पवन जो कि शुद्धात्मतत्त्वसे सदा पराङ्मुख
हैं, उसी प्रचंड पवनसे जिसका चित्त चलायमान नहीं हुआ, उसीका आत्मा निर्मल होता है ।
आत्मा रत्नके समान है, अनादिकालका अज्ञानरूपी पातालमें पड़ा है, सो रागादि मलके
छोड़नेसे शीघ्र ही निर्मल हो जाता है, हे बच्चे, आत्मा उन भव्य जीवोंका निर्मल होता है, और
प्रत्यक्ष उनको आत्माका दर्शन होता है । परमकला जो आत्माकी अनुभूति वही हुई निश्चयदृष्टि