Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৫৮ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৭৫
अप्पा इत्यादि । अप्पा स्वशुद्धात्मानं मेल्लिवि मुक्त्वा । कथंभूतमात्मानम् । णाणमउ
सकलविमलकेवलज्ञानाद्यनन्तगुणनिर्वृत्तं अण्णु अन्यद्बहिर्द्रव्यालम्बनं जे ये केचन झायहिं
ध्यायन्ति । किम् । झाणु ध्यानं वढ वत्स मित्र अण्णाण-वियंभियहं शुद्धात्मानुभूतिविलक्षणा-
ज्ञानविजृम्भितानां परिणतानां कउ तहं केवल-णाणु कथं तेषां केवलज्ञानं किंतु नैवेति । अत्र
यद्यपि प्राथमिकानां सविकल्पावस्थायां चित्तस्थितिकरणार्थं विषयकषायरूपदुर्ध्यानवञ्चनार्थं च
जिनप्रतिमाक्षरादिकं ध्येयं भवतीति तथापि निश्चयध्यानकाले स्वशुद्धात्मैव ध्येय इति
भावार्थः ।।१५८।।
अथ —
२९०) सुण्णउँ पउँ झायंताहँ वलि वलि जोइयडाहँ ।
समरसि-भाउ परेण सहु पुण्णु वि पाउ ण जाहँ ।।१५९।।
कुतः ] केवलज्ञानकी प्राप्ति कैसे हो सकती है ? कभी नहीं हो सकती ।
भावार्थ : — यद्यपि विकल्प सहित अवस्थामें शुभोपयोगियोंको चित्तकी स्थिरताके
लिये और विषय कषायरूप खोटे ध्यानके रोकनेके लिये जिनप्रतिमा तथा णमोकारमंत्रके अक्षर
ध्यावने योग्य हैं, तो भी निश्चय ध्यानके समय शुद्ध आत्मा ही ध्यावने योग्य है, अन्य
नहीं ।।१५८।।
आगे शुभाशुभ विकल्पसे रहित जो निर्विकल्प (शून्य) ध्यान उसको जो ध्याते हैं, उन
योगियोंको मैं बलिहारी करता हूँ, ऐसा कहते हैं —
ভাবার্থ: — জে কোঈ সকল বিমল কেবলজ্ঞানাদি অনংতগুণথী রচাযেল স্বশুদ্ধাত্মানে
ছোডীনে বহির্দ্রব্যনা আলংবনরূপ অন্য ধ্যাননে ধ্যাবে ছে তেমনে – শুদ্ধাত্মানী অনুভূতিথী বিলক্ষণ
অজ্ঞানমাং পরিণত তেমনে – হে মিত্র! কেবলজ্ঞান কঈ রীতে থায? ন জ থায.
অহীং, জোকে প্রাথমিকোনে সবিকল্প অবস্থামাং চিত্তনী স্থিরতা করবা মাটে অনে
বিষযকষাযরূপ দুর্ধ্যাননা বংচনার্থে (ছোডবা মাটে) জিনপ্রতিমা তথা ণমোকারমংত্রনা অক্ষরাদিনুং
ধ্যান করবা যোগ্য ছে তোপণ নিশ্চযধ্যাননা কালে স্বশুদ্ধাত্মা জ ধ্যাববা যোগ্য ছে এবো ভাবার্থ
ছে. ১৫৮.
বলী (হবে শুভাশুভ বিকল্পথী শূন্য (রহিত, খালী) জে নির্বিকল্প ধ্যান, তেনে জে ধ্যাবে
ছে তে যোগীওনী হুং বলিহারী করুং ছুং. এম কহে ছে) : —