Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৭৬ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৫৯
शून्यं पदं ध्यायतां पुनः पुनः (?) योगिनाम् ।
समरसीभावं परेण सह पुण्यमपि पापं न येषाम् ।।१५९।।
सुण्णउं पउं इत्यादि । सुण्णउं शुभाशुभमनोवचनकायव्यापारैः शून्यं पउं वीतराग-
परमानन्दैकसुखामृतरसास्वादरूपा स्वसंवित्तिमयी या सा परमकला तया भरितावस्थापदं
निजशुद्धात्मस्वरूपं झायंताहं वीतरागत्रिगुप्तिसमाधिबलेन ध्यायतां बलि बलि जोइयडाहं
श्रीयोगीन्द्रदेवाः स्वकीयाभ्यन्तरगुणानुरागं प्रकटयन्ति, बलिं क्रियेऽहमिति परमयोगिनां प्रशंसां
कुर्वन्ति । येषां किम् । समरसि-भाउ वीतरागपरमाह्लादसुखेन परमसमरसीभावम् । केन सह ।
गाथा – १५९
अन्वयार्थ : — [शून्यं पदं ध्यायतां ] विकल्प रहित ब्रह्मपदको ध्यावनेवाले
[योगिनाम् ] योगियोंकी मैं [बलिं बलिं ] बार बार मस्तक नमाकर पूजा करता हूँ, [येषाम् ]
जिन योगियोंके [परेण सह ] अन्य पदार्थोंके साथ [समरसीभावं ] समरसीभाव है, और
[पुण्यम् पापं अपि न ] जिनके पुण्य और पाप दोनों ही उपादेय नहीं हैं ।
भावार्थ : — शुभ – अशुभ मन, वचन, कायके व्यापार रहित जो वीतराग परमआनंदमयी
सुखामृत – रसका आस्वाद वही उसका स्वरूप है, ऐसी आत्मज्ञानमयी परमकलाकर भरपूर जो
ब्रह्मपद – शून्यपद – निज शुद्धात्मस्वरूप उसको ध्यानी राग रहित तीन गुप्तिरूप समाधिके बलसे
ध्यावते हैं, उन ध्यानी योगियोंकी मैं बार बार बलिहारी करता हूँ, ऐसे श्रीयोगींद्रदेव अपना
अन्तरंगका धर्मानुराग प्रगट करते हैं, और परम योगीश्वरोंके परम स्वसंवेदनज्ञान सहित महा
समरसीभाव है । समरसीभावका लक्षण ऐसा है, कि जिनके इंद्र और कीट दोनों समान,
चिंतामणिरत्न और कंकड़ दोनों समान हों । अथवा ज्ञानादि गुण और गुणी निज शुद्धात्म द्रव्य
इन दोनोंका एकीभावरूप परिणमन वह समरसीभाव है, उसकर सहित हैं, जिनके पुण्य-पाप दोनों
(সমরসীভাবনুং লক্ষণ আ ছে কে জ্ঞানাদিগুণ অনে গুণী (নিজশুদ্ধাত্মদ্রব্য) এ বন্নেনুং
একীভাবরূপ পরিণমন তে সমরসীভাব ছে.)
ভাবার্থ: — শুভাশুভ মনবচনকাযনা ব্যাপারথী শূন্য অনে এক (কেবল) বীতরাগ
পরমানংদরূপ সুখামৃতরসনা আস্বাদরূপ স্বসংবেদনময জে পরমকলা তেনাথী পরিপূর্ণ
নিজশুদ্ধাত্ম স্বরূপনুং বীতরাগ ত্রণ গুপ্তিথী যুক্ত সমাধিনা বলথী ধ্যান করনারাও প্রত্যে
শ্রী যোগীন্দ্রদেব পোতানো অভ্যংতর (অংতরনো) গুণানুরাগ প্রগট করে ছে. তে পরম যোগীও
পর হুং শ্রী যোগীন্দ্রদেব – ফরী ফরী বলিহারী করুং ছুং – ফরী ফরী বারী জাউং ছুং, এম কহীনে
তেও তে পরমযোগীওনী প্রশংসা করে ছে কে জে পরমযোগীওনে স্বসংবেদ্যমান পরমাত্মানী সাথে