Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-160 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৬০ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৭৭
परेण सहु स्वसंवेद्यमानपरमात्मना सह पुनरपि किं येषाम् पुण्णु वि पाउ ण जाहं शुद्धबुद्धैक-
स्वभावपरमात्मनो विलक्षणं पुण्यपापद्वयमिति न येषामित्यभिप्रायः ।।१५९।।
अथ
२९१) उव्वस वसिया जो करइ वसिया करइ जु सुण्णु
बलि किज्जउँ तसु जोइयहिँ जासु ण पाउ ण पुण्णु ।।१६०।।
उद्वसान् वसितान् यः करोति वसितान् करोति यः शून्यान्
बलिं कुर्वेऽहं तस्य योगिनः यस्य न पापं न पुण्यम् ।।१६०।।
उव्वस इत्यादि उव्वस उद्वसान् शून्यान् कान् वीतरागतात्त्विकचिदानन्दोच्छलन-
निर्भरानन्दशुद्धात्मानुभूतिपरिणामान् परमानन्दनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानबलेनेदानीं विशिष्टज्ञानकाले
ही नहीं हैं ये दोनों शुद्ध, बुद्ध चैतन्य स्वभाव परमात्मासे भिन्न हैं, सो जिन मुनियोंने दोनोंको
हेय समझ लिया है, परमध्यानमें आरूढ़ हैं, उनकी मैं बार बार बलिहारी जाता हूँ ।।१५९।।
आगे फि र भी योगीश्वरोंकी प्रशंसा करते हैं
गाथा१६०
अन्वयार्थ :[यः ] जो [उद्धसान् ] ऊ जड़ हैं, अर्थात् पहले कभी नहीं हुए ऐसे
शुद्धोपयोगरूप परिणामोंका [वसितान् ] स्वसंवेदनज्ञानके बलसे बसाता है, अर्थात् अपने
हृदयमें स्थापन करता है, और [यः ] जो [वसितान् ] पहलेके बसे हुए मिथ्यात्वादि परिणाम
हैं, उनको [शून्यान् ] ऊ जड़ करता है, उनको निकाल देता है, [तस्य योगिनः ] उस योगीकी
[अहं ] मैं [बलिं ] पूजा [कुर्वे ] करता हूँ, [यस्य ] जिसके [न पापं न पुण्यम् ] न तो पाप
है और न पुण्य है
भावार्थ :जो प्रगटरूप नहीं बसते हैं, अनादिकालके वीतराग चिदानंदस्वरूप
शुद्धात्मानुभूतिरूप शुद्धोपयोग परिणाम उनको अब निर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानके बलसे बसाता
বীতরাগ পরম আহ্লাদস্বরূপ সুখথী পরমসমরসীভাব ছে অনে জেমনে শুদ্ধ, বুদ্ধ জ জেনো
এক স্বভাব ছে. এবা পরমাত্মাথী বিলক্ষণ পুণ্য-পাপ বন্নে নথী. ১৫৯.
হবে, ফরী যোগীশ্বরোনী প্রশংসা করে ছে :
ভাবার্থ:জে শূন্য (পূর্বে নহি বসেলা) এবা বীতরাগ তাত্ত্বিক চিদানংদথী উছলতা
নির্ভর আনংদময শুদ্ধাত্মানী অনুভূতিরূপ পরিণামোনে পরমানংদময নির্বিকল্প স্বসংবেদনরূপ