Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-161 (Adhikar 2) Nirvikalp Samadhinu Kathan.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৭৮ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৬০
वसिया करइ तेनैव स्वसंवेदनज्ञानेन वसितान् भरितावस्थान् करोति जु जो यः परमयोगी
सुण्णु निश्चयनयेन शुद्धचैतन्यनिश्चयप्राणस्य हिंसकत्वान्मिथ्यात्वविकल्पजालमेव निश्चयहिंसा
तत्प्रभृति-समस्तविभावपरिणामान् स्वसंवेदनज्ञानलाभात्पूर्वं वसितानिदानीं शून्यान् करोतीति
बलि
किज्जउतसु जोइयहिं बलिर्मस्तकस्योपरितनभागेनावतारणं क्रियेऽहमिति तस्य योगिनः
एवं
श्रीयोगीन्द्रदेवाः गुणप्रशंसां कुर्वन्ति पुनरपि किं यस्य योगिनः जासु ण यस्य न किम्
पाउ ण पुण्णु वीतरागशुद्धात्मतत्त्वाद्विपरीतं न पुण्यपापद्वयमिति तात्पर्यम् ।।१६०।।
अथैक सूत्रेण प्रश्नं कृत्वा सूत्रचतुष्टयेनोत्तरं दत्त्वा च तमेव पूर्वसूत्रपञ्चकेनोक्तं
निर्विकल्पसमाधिरूपं परमोपदेशं पुनरपि विवृणोति पञ्चकलेन
२९२) तुट्टइ मोहु तडित्ति जहिँ मणु अत्थवणहँ जाइ
सो सामइ उवएसु कहि अण्णेँ देविं काइँ ।।१६१।।
है, निज स्वादनरूप स्वाभाविक ज्ञानकर शुद्ध परिणामोंकी बस्ती निज घटरूपी नगरमें भरपूर
करता है
और अनादिकालके जो शुद्ध चैतन्यरूप निश्चयप्राणोंके घातक ऐसे मिथ्यात्व
रागादिरूप विकल्पजाल हैं, उनको निज स्वरूप नगरसे निकाल देता है, उनको ऊ जड़ कर देता
है, ऐसे परमयोगीकी मैं बलिहारी हूँ, अर्थात् उसके मस्तक पर मैं अपनेको वारता हूँ
इसप्रकार
श्रीयोगींद्रदेव परमयोगियोंकी प्रशंसा करते हैं जिन योगियोंके वीतराग शुद्धात्मा तत्त्वसे विपरीत
पुण्यपाप दोनों ही नहीं हैं ।।१६०।।
आगे एक दोहेमें शिष्यका प्रश्न और चार दोहोंमें प्रश्नका उत्तर देकर
निर्विकल्पसमाधिरूप परम उपदेशको फि र भी विस्तारसे कहते हैं
জ্ঞাননা বলথী অত্যারে বিশিষ্ট জ্ঞাননা সমযে তে জ স্বসংবেদনরূপ জ্ঞান বডে বসাবে ছেভরপূর
করে ছে অনে নিশ্চযনযথী শুদ্ধ চৈতন্যরূপ নিশ্চযপ্রাণনা হিংসক হোবাথী মিথ্যাত্ব বিকল্পজাল জ
নিশ্চযহিংসা ছে, তে হিংসাথী মাংডীনে পূর্বে বসেলা সমস্ত বিভাবপরিণামোনে স্বসংবেদনরূপ জ্ঞাননী
প্রাপ্তিথী অত্যারে শূন্য (উজ্জড) করে ছে, তে যোগীনে হুং বারী জাউং ছুং অর্থাত্ হুং মাথুং নমাবীনে
নমস্কার করুং ছুং, এ রীতে শ্রী যোগীন্দ্রদেব গুণোনী প্রশংসা করে ছে কে জে যোগীনে বীতরাগ শুদ্ধ
আত্মতত্ত্বথী বিপরীত পুণ্য অনে পাপ বন্নে নথী. ১৬০.
হবে, এক গাথাসূত্র দ্বারা প্রশ্ন করীনে তথা চার সূত্র দ্বারা উত্তর আপীনে তে জ অগাউনা
পাংচ সূত্রো দ্বারা (গাথা ১৫৬ থী ১৬০, এ পাংচ সূত্রো দ্বারা) কহেলা নির্বিকল্প সমাধিরূপ
পরমোপদেশনুং পাংচ সূত্রো দ্বারা ফরীনে পণ বর্ণন করে ছে :