Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১৬১ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪৭৯
त्रुटयति मोहः झटिति यत्र मनः अस्तमनं याति
तं स्वामिन् उपदेशं कथय अन्येन देवेन किम् ।।१६१।।
तुट्टइ इत्यादि तुट्टइ नश्यति कोऽसौ मोहु निर्मोहशुद्धात्मद्रव्यप्रतिपक्षभूतो मोहः
तडित्ति झटिति जहिं मोहोदयोत्पन्नसमस्तविकल्परहिते यत्र परमात्मपदार्थे पुनरपि किं यत्र
मणु अत्थवणहं जाइ निर्विकल्पात् शुद्धात्मस्वभावाद्विपरीतं नानाविकल्पजालरूपं मनोवास्तं
गच्छति
सो सामिय उवएसु कहि हे स्वामिन् तदुपदेशं कथयति प्रभाकरभट्टः श्रीयोगीन्द्रदेवान्
पृच्छति
अण्णें देविं काइं निर्दोषिपरमात्मनः परमाराध्यात्सकाशादन्येन देवेन किं
प्रयोजनमित्यर्थः ।।१६१।। इति प्रभाकरभट्टप्रश्नसूत्रमेकं गतम् अथोत्तरम्
হবে, প্রশ্নরূপ এক গাথাসূত্র কহে ছে :
ভাবার্থ :মোহনা উদযথী উত্পন্ন, সমস্ত বিকল্পোথী রহিত এবা পরমাত্ম-
পদার্থমাং নির্মোহ শুদ্ধ আত্মদ্রব্যথী প্রতিপক্ষভূত মোহ শীঘ্র নাশ পামে অনে তেমাং নির্বিকল্প শুদ্ধ
আত্মস্বভাবথী বিপরীত অনেক বিকল্পনী জালরূপ মন বিলয পামে তে উপদেশ হে স্বামী! আপ
মনে কহো, এম প্রভাকরভট্ট শ্রী যোগীন্দ্রদেবনে প্রশ্ন করে ছে. এবা নির্দোষ পরমাত্মা
জে পরম
আরাধ্য ছে-তেনাথী অন্য দেবনুং মারে শুং প্রযোজন ছে? এবো অর্থ ছে. ১৬১.
এ রীতে প্রভাকরভট্টনা প্রশ্ননুং এক গাথাসূত্র সমাপ্ত থযুং.
হবে তেনো উত্তর :
गाथा१६१
अन्वयार्थ :[स्वामिन् ] हे स्वामी, मुझे [तं उपदेशं ] उस उपदेशको [कथय ]
कहो [यत्र ] जिससे [मोहः ] मोह [झटिति ] शीघ्र [त्रुटयति ] छूट जावे, [मनः ] ओर चंचल
मन [अस्तमनं ] स्थिरताको [याति ] प्राप्त हो जावे, [अन्य देवेन किम् ] दूसरे देवताओंसे क्या
प्रयोजन है ?
भावार्थ :प्रभाकरभट्ट श्रीयोगीन्द्रदेवसे प्रश्न करते हैं, कि हे स्वामी, वह उपदेश कहो
कि जिससे निर्मोह शुद्धात्मद्रव्यसे पराङ्मुख मोह शीघ्र जुदा हो जावे, अर्थात् मोहके उदयसे
उत्पन्न समस्त विकल्प-जालोंसे रहित जो परमात्मा पदार्थ उसमें मोह-जालका लेश भी न रहे,
और निर्विकल्प शुद्धात्म भावनासे विपरीत नाना विकल्पजालरूपी चंचल मन वह अस्त हो
जावे
हे स्वामी, निर्दोष परमाराध्य जो परमात्मा उससे अन्य जो मिथ्यात्वी देव उनसे मेरा क्या
मतलब है ? ऐसा शिष्यने प्रश्न किया उसका एक दोहा-सूत्र कहा ।।१६१।।
आगे श्रीगुरु उत्तर देते हैं