Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 484 of 565
PDF/HTML Page 498 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৮৪ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৬৩
च कुम्भकरेचकपूरकादिरूपो वायुनिरोधो न ग्राह्यः किंतु स्वयमनीहितवृत्त्या
निर्विकल्पसमाधिबलेन दशमद्वारसंज्ञेन ब्रह्मरन्ध्रसंज्ञेन सूक्ष्माभिधानरूपेण च तालुरन्ध्रेण योऽसौ
गच्छति स एव ग्राह्यः तत्र
यदुक्तं केनापि‘‘मणु मरइ पवणु जहिं खयहं जाइ सव्वंगइ
तिहुवणु तहिं जि ठाइ मूढा अंतरालु परियाणहि तुट्टइ मोहजालु जइ जाणहि ।।’’ अत्र
पूर्वोक्त लक्षणमेव मनोमरणं ग्राह्यं पवनक्षयोऽपि पूर्वोक्त लक्षण एव त्रिभुवनप्रकाशक आत्मा
तत्रैव निर्विकल्पसमाधौ तिष्ठतीत्यर्थः
अन्तरालशब्देन तु रागादिपरभावशून्यत्वं ग्राह्यं न
चाकाशे ज्ञाते सति मोहजालं नश्यति न चान्याद्रशं परकल्पितं ग्राह्यमित्यभिप्रायः ।।१६३।।
দশমদ্বার নামনা ব্রহ্মরংধ্র সংজ্ঞাবালা অনে সূক্ষ্ম অভিধানরূপ তালুরংধ্রমাংথী জে (বাযু) নীকলে
ছে তে জ ত্যাং লেবো. বলী, কহ্যুং পণ ছে কে-
‘‘मणु मरई पवणु जहिं खयहं जाइ सव्वंगइ तिहुवणु
तहिं जि ठाइ मूढा अंतरालु परियाणहि तुÿइ मोहजालु जइ जाणहि ।।’’ (অর্থ:মূঢ
অজ্ঞানীওজ ‘অংবর’নো অর্থ আকাশ সমজে ছে. পণ জো ‘অংবর’নো অর্থ পরমসমাধি জাণে
তো মন মরী জায ছে, পবননো সহজ ক্ষয থায ছে. মোহজাল নাশ পামে ছে অনে সর্ব অংগ
ত্রিভুবননী সমান থঈ জায ছে (অর্থাত্ কেবলজ্ঞান থবাথী তেমাং ত্রণ লোক জণায ছে).
অহীং, পূর্বোক্ত লক্ষণবালুং জ মনোমরণ সমজবুং, পবনক্ষয পণ পূর্বোক্ত লক্ষণবালো জ
সমজবো, ত্রিভুবনপ্রকাশক আত্মা তে নির্বিকল্প সমাধিমাং জ রহে ছে এবো অর্থ ছে. ‘অন্তরাল’
শব্দথী তো রাগাদি পরভাবনুং শূন্যপণুং সমজবুং পণ আকাশনে জাণতাং মোহজাল নাশ পামতী
নথী, তেথী (‘অন্তরাল’ শব্দথী) অন্যে বতাবেলুং পরকল্পিত (আকাশ) ন সমজবুং, এবো
অভিপ্রায ছে. ১৬৩.
निर्विकल्पसमाधिके बलसे ब्रह्मद्वार नामा सूक्ष्म छिद्र जिसको तालुवेका रंध्र कहते हैं, उसके
द्वारा अवाँछिक वृत्तिसे पवन निकलता है, वह लेना
ध्यानी मुनियोंके पवन रोकनेका यत्न
नहीं होता है , बिना ही यत्नके सहज ही पवन रुक जाता है, और मन भी अचल हो जाता
है, ऐसा समाधिका प्रभाव है
ऐसा दूसरी जगह भी कहा है, कि जो मूढ है, वे तो अम्बरका
अर्थ आकाशको जानते हैं, और जो ज्ञानीजन हैं, वे अम्बरका अर्थ परमसमाधिरूप निर्विकल्प
जानते हैं
सो निर्विकल्प ध्यानमें मन मर जाता है, पवनका सहज ही विरोध होता है, और
सब अंग तीन भुवनके समान हो जाता है जो परमसमाधिको जाने, तो मोह टूट जावे मनके
विकल्पोंका मिटना वही मनका मरना है, और वही श्वासका रुकना है, जो कि सब द्वारोंसे
रुककर दशवें द्वारमेंसे होकर निकले
तीन लोकका प्रकाशक आत्माको निर्विकल्पसमाधिमें
स्थापित करता है अंतराल शब्दका अर्थ रागादि भावोंसे शून्यदशा लेना आकाशका अर्थ न
लेना आकाशके जाननेसे मोह-जाल नहीं मिटता, आत्मस्वरूपके जाननेसे मोह-जाल मिटता
है जो पातञ्जलि आदि परसमयमें शून्यरूप समाधि कही है, वह अभिप्राय नहीं लेना,