Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
৪৯০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-২ : দোহা-১৬৬-১৬৭
णवि ‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् । प्राप्तं मुक्ति पदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ इति वचनात् शिवशब्दवाच्यो योऽसौ मोक्षस्तस्य मार्गोऽपि न ज्ञातः ।
कथंभूतो मार्गः । स्वशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपः । यत्र मार्गे किम् । जहिं जोहहिं
अणुराउ यत्र निश्चयमोक्षमार्गे परमयोगिनामनुरागस्तात्पर्यम् । न केवलं मोक्षमार्गोऽपि न
ज्ञातः । घोरु ण चिण्णउ तव-चरणु घोरं दुर्धरं परीषहोपसर्गजयरूपं नैव चीर्णं न कृतम् ।
किं तत् । अनशनादिद्वादशविधं तपश्चरणम् । यत्कथंभूतम् । जं णिय-बोहहं सारु
यत्तपश्चरणं वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनलक्षणेन निजबोधेन सारभूतम् । पुनश्च किं न कृतम् ।
पुण्णु वि पाउ वि निश्चयनयेन शुभाशुभनिगलद्वयरहितस्य संसारिजीवस्य व्यवहारेण
सुवर्णलोह-निगलद्वयसद्रशं पुण्यपापद्वयमपि दड्ढु णवि शुद्धात्मद्रव्यानुभवरूपेण ध्यानाग्निना
दग्धं नैव । किमु छिज्जइ संसारु कथं छिद्यते संसार इति । अत्रेदं व्याख्यानं ज्ञात्वा निरन्तरं
কর্যো ‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् । प्राप्तं मुक्ति पदं येन स शिवः परिकीर्तितः’’ ।। (আপ্ত
স্বরূপ ২৪) [অর্থর্ : — শিবরূপ, (পরমকল্যাণরূপ, নির্বাণরূপ, শাংত অনে অক্ষয মুক্তিপদ
জেণে প্রাপ্ত কর্যুং ছে তে শিব ছে) এ বচনানুসারে ‘শিব’ শব্দথী বাচ্য জে মোক্ষ ছে তেনা স্বশুদ্ধ
আত্মানাং সম্যক্শ্রদ্ধান, সম্যগ্জ্ঞান অনে সম্যগ্অনুচরণরূপ মার্গনে পণ-কে জে
নিশ্চযমোক্ষমার্গমাং পরমযোগীওনে অনুরাগ – তাত্পর্য ছে তেনে পণ জাণ্যো নহি, কেবল
মোক্ষমার্গনে জাণ্যো নহি এটলুং জ নহি পণ জে বীতরাগ নির্বিকল্প স্বসংবেদন জেনুং লক্ষণ ছে
এবা নিজবোধথী সারভূত ঘোর, দুর্ধর পরিষহ, ঘোর, দুর্ধর উপসর্গনা জযরূপ অনশনাদি বার
প্রকারনুং তপশ্চরণ কর্যুং নহি অনে নিশ্চযনযথী শুভাশুভ বন্নে বেডীথী রহিত এবা
সংসারীজীবনাং, ব্যবহারনযথী সোনানী অনে লোঢানী বে বেডী জেবাং পুণ্য অনে পাপ বন্নেনে পণ
শুদ্ধ আত্মদ্রব্যনা অনুভবরূপ ধ্যাননী অগ্নি বডে বাল্যাং নহি তো সংসার কেবী রীতে ছেদায?]
दास, कुप्य (वस्त्र तथा सुगंधादिक), भांड (बर्तन आदि) ये दस तरहके बाहरके परिग्रह,
इसप्रकार बाह्य अभ्यंतर परिग्रहके चौबीस भेद हुए, इनको नहीं छोड़ा । जीवित, मरण, सुख, दुःख,
लाभ, अलाभादिमें समान भाव कभी नहीं किया, कल्याणरूप मोक्षका मार्ग सम्यग्दर्शन ज्ञान
चारित्र भी नहीं जाना । निजस्वरूपका श्रद्धान, निजस्वरूपका ज्ञान और निजस्वरूपका आचरण
निश्चयरत्नत्रय तथा नव पदार्थोंका श्रद्धान, नव पदार्थोंका ज्ञान और अशुभ क्रियाके त्यागरूप
व्यवहाररत्नत्रय — ये दोनों ही मोक्षके मार्ग हैं, इन दोनोंमेंसे निश्चयरत्नत्रय तो साक्षात् मोक्षका मार्ग
है, और व्यवहाररत्नत्रय परम्पराय मोक्षका मार्ग है । ये दोनों मैंने कभी नहीं जाने, संसारका ही मार्ग
जाना । अनशनादि बारह प्रकारका तप नहीं किया, बाईस परीषह नहीं सहन की । तथा पुण्य
सुवर्णकी बेड़ी, पाप लोहेकी बेड़ी, ये दोनों बंधन निर्मल आत्मध्यानरूपी अग्निसे भस्म नहीं