तदुपरांत विक्रमनी १९मी सदीमां थयेल विद्वान पंडित दौलतरामजीए टीकाकारना
भावोने सुगम हिंदी भाषामां समजाववानो सुंदर प्रयास कर्यो छे.
श्री परमात्मप्रकाशना ग्रंथकार आचार्य श्री योगीन्द्रदेव तथा टीकाकार श्री ब्रह्मदेवजीना
अंतरमां रहेला भावोने पोतानी अनुभवरसभीनी प्रवचनशैलीथी वर्तमानयुगना अद्वितीय
अध्यात्मयोगी परमोपकारी सुवर्णपुरीना संत श्री कहानगुरुदेवे खोली मुमुक्षु जगत पर अवर्णनीय
उपकार कर्यो छे. तेओश्रीए ज वर्तमानमां मात्र आ ज नहीं पण महान आचार्यो प्रणीत अनेक
महान ग्रंथोनां सर्व रहस्योने पोते अनुभवीने तथा तेना भावोने खोलीने वर्तमानकाळमां भगवान
महावीरे प्रबोधेला स्वानुभूतियुक्त सम्यक् रत्नत्रयप्रधान मोक्षमार्गनी ज्योतने जळहळती राखी
छे.
तथा तद्भक्त स्वानुभूतिविभूषित सम्यक्त्वपरिणत पूज्य भगवती बहेनश्री चंपाबहेने
पण पूज्य गुरुदेवना अंतरना भावोने स्पष्ट करी पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा थयेली शासनप्र्रभावनामां
अनेरा रंगो पूर्या छे.
अंतमां आ युगना आ बंने संत महात्माओने अंतःकरणपूर्वक वंदन करी तेमना
उपकारोने हृदयमां सर्वदा राखी मुमुक्षुजनो आ परमात्मप्रकाश ग्रंथना भावोने समजी निज
आत्मकल्याणने साधे ए ज अभ्यर्थना.
साहित्यप्रकाशनसमिति
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)
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