Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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आ प्रमाणे प्रथम अधिकारमां बहिरात्माने परमात्मा बनवानो उपाय सामान्यरूपे
समजावी ते ज उपायने द्वितीय महाधिकारनी १०७ (क्षेपक सहित ११९) गाथाओ अने
चूलिकारूप १०७ गाथाओ मळी कुल २२६ गाथाओमां विस्ताररुचि शिष्यने आ ज विषय
विशेषपणे अत्यंत विस्तारथी समजावेल छे.
आ द्वितीय अधिकारमां प्रथम मोक्ष अने मोक्षना फळनी रुचि थवा अर्थे सर्वप्रथम मोक्ष
अने मोक्षना फळनुं स्वरूप बतावेल छे. त्यारबाद सम्यक्रत्नत्रयस्वरूप एक ज मोक्षमार्गने
निश्चयनय अने व्यहारनय द्वारा विस्तारथी समजावेल छे. आ प्रमाणे निश्चय अने व्यवहारनयथी
कहेवामां आवता मोक्षमार्गरूपे परिणमता जीवने परिणतिमां अपूर्व निर्मळतानी वृद्धि थतां
(
गुणस्थान क्रमनी अपेक्षाए सातिशय अप्रमत्तदशाने प्राप्त थई श्रेणी मांडवायोग्य-दशाने
पामवारूप) अभेदरत्नत्रयनुं स्वरूप बतावी तेवा जीवोनी अंतर परिणतिमां समभावनी उग्रता
अने साम्यभावमय शुद्धोपयोगरूप निर्विकल्पदशानुं विस्तारथी वर्णन करतां अंते सोळवला सुवर्ण
समान सर्व जीवो शुद्धनये समान छे एम दर्शावेल छे. आम आ द्वितीय अधिकारमां
संसारीजीवोने परमात्मा थवानो उपाय विस्तारथी समजावेल छे.
आ द्वितीय अधिकारमां अंते विस्तारथी शास्त्रमां नहीं कहेवायेला अने कहेवाई गयेला
भावोना विशेष व्याख्यान स्वरूपे १०७ गाथाओमां चूलिका कहेल छे. आ द्वारा शुद्धोपयोगरूप
अभेदरत्नत्रयमयी साक्षात् मोक्षना उपायने विस्तृतपणे शुद्धात्मस्वभावना आश्रये सम्यक्-
रत्नत्रयना बळे विविध प्रकारना मोहनो त्याग थतां परम निर्विकल्प समाधिदशामय
अभेदरत्नत्रयनुं के जे गुणस्थानक्रमनी परिभाषामां श्रेणीदशा कहेवाय छे तेनुं स्वरूप बतावेल
छे. श्रावकदशामां आवुं उत्कृष्ट ध्यान थई शकतुं नथी. तेवुं उत्कृष्ट ध्यान जे साक्षात् मोक्षनुं कारण
छे ते बतावी अंते तेना फळरूपे अर्हंत-सिद्धपदनी प्राप्ति बतावी त्यारबाद आ परमात्मप्रकाश
ग्रंथना अभ्यासनुं फळ बतावीने तेना अभ्यासनी प्रेरणा आपी तथा अभ्यास करनारनी योग्यता
दर्शावी ग्रंथनी समाप्ति करी छे; वाचके पण आ शास्त्रनो अभ्यास करी तद्भावमय बनवुं
जोईए. ए ज आ शास्त्रनुं तात्पर्य छे.
टीकाकार मुनिराज व्याकरणादि करतां अर्थ पर विशेष भार मुके छे. तेओ सौथी पहेलां
शब्दार्थ आपे छे. त्यारबाद शास्त्रकारना कथननी नयविवक्षाने खोलीने नयार्थ समजावे छे.
शास्त्रकारना कथनमां अन्यमत जेवी वाचकनी कई विपरीत कल्पनाओनुं खंडन थाय छे ते दर्शावी
मतार्थ दर्शावेल छे तथा शास्त्रकारना कथनने पोषक अन्य आगमोनो संदर्भ आपी आगमार्थ
बतावी अंतमां गाथानुं तथा जे ते अधिकारनुं तात्पर्य दर्शावी भावार्थ बतावे छे. आम आ टीका
सर्वांग सुंदर छे तथा शास्त्रकारना भावोने समजवामां अत्यंत उपयोगी छे. मोक्षमार्गना साधकने
सरागचारित्रथी वीतरागचारित्र अने वीतरागचारित्रथी तेना फळस्वरूप मोक्ष-अनंतसुखनी
प्राप्तिनो मार्ग टीकाकार खूब ज सरळ तेम ज गंभीर शैलीथी स्पष्ट करे छे.
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