Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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प्रथमतस्तावत् ‘सिरिगुरु’ इत्यादिमोक्षस्वरूपकथनमुख्यत्वेन दोहकसूत्राणि दशकम्, अत ऊर्ध्वं
‘दंसणु णाणु’ इत्याद्येकसूत्रेण मोक्षफलं, तदनन्तरं ‘जीवहं मोक्खहं हेउ वरु’
इत्याद्येकोनविंशतिसूत्रपर्यन्तं निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गमुख्यतया व्याख्यानम्, अथानन्तरम-
भेदरत्नत्रयमुख्यत्वेन
‘जो भत्तउ’ इत्यादि सूत्राष्टकम्, अत ऊर्ध्वं समभावमुख्यत्वेन ‘कम्मु
पुरक्किउ’ इत्यादिसूत्राणि चतुर्दश, अथानन्तरं पुण्यपापसमानमुख्यत्वेन ‘बंधहं मोक्खहं हेउ णिउ’
इत्यादिसूत्राणि चतुर्दश, अत ऊर्ध्वम् एकचत्वारिंशत्सूत्रपर्यन्तं प्रक्षेपकान् विहाय
शुद्धोपयोगस्वरूपमुख्यत्वमिति समुदायपातनिका
तत्र प्रथमतः एकचत्वारिंशन्मध्ये ‘सुद्धहं संजमु’
इत्यादिसूत्रपञ्चकपर्यन्तं शुद्धोपयोगमुख्यतया व्याख्यानम्, अथानन्तरं ‘दाणिं लब्भइ’
बीजो महाधिकार (दोहक सूत्रो२१४)
त्यारपछी बीजा महाधिकारनी (दोहकसूत्रो २१४) शरूआतमां मोक्ष, मोक्षफळ, अने
मोक्षमार्गनुं स्वरूप कहेवामां आवे छे. (१) त्यां प्रथम ज मोक्ष स्वरूपना कथननी मुख्यताथी
‘‘सिरिगुरु’’ इत्यादि दस दोहकसूत्रो छे, (२) त्यारपछी ‘‘दंसणु णाणु’’ ए एक सूत्रथी
मोक्षनुं फळ दर्शाव्युं छे, (३) त्यारपछी ‘‘जीवहं मोक्खहं हेउ वरु’’ इत्यादि ओगणीस सूत्र
सुधी निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गनी मुख्यताथी व्याख्यान कर्युं छे, (४) त्यारपछी अभेदरत्नत्रयनी
मुख्यताथी
‘‘जो भत्तउ’’ इत्यादि आठ सूत्रो छे, (५) त्यारपछी समभावनी मुख्यताथी ‘‘कम्मु
पुरक्किउ’’ इत्यादि चौद सूत्रो छे, (६) त्यारपछी पुण्य पापनी समानतानी मुख्यताथी ‘‘बंधहं
मोक्खहं हेउ णिउ’’ इत्यादि चौद सूत्रो छे.
त्यार पछी प्रक्षेपकोने छोडीने एकतालीस सूत्रो सुधी शुद्धोपयोगना स्वरूपनी मुख्यता
छे. ए प्रमाणे समुदायपातनिका जाणवी.
(७) ते एकतालीस सूत्रोमांथी प्रथम ‘‘सुद्धहं संजमु’’ इत्यादि पांच सूत्रो सुधी
शुद्धोपयोगनी मुख्यताथी व्याख्यान छे, (८) त्यारपछी ‘दाणिं लब्भइ’ इत्यादि पंदर सूत्रो
४ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ पातनिका
और मोक्षमार्ग इनका स्वरूप कहा है, उसमें प्रथम ही ‘सिरिगुरु’ इत्यादि मोक्ष रूपके कथनकी
मुख्यताकर दस दोहे, ‘दंसण णाणु’ इत्यादि एक दोहाकर मोक्षका फल, निश्चय व्यवहार
मोक्षमार्गकी मुख्यताकर ‘जीवहं मोक्खहं हेउ वरु’ इत्यादि उन्नीस दोहे, अभेदरत्नत्रयकी
मुख्यताकर ‘जो भत्तउ’ इत्यादि आठ दोहे, समभावकी मुख्यताकर ‘कम्मु पुरक्किउ’ इत्यादि
चौदह दोहे पुण्य-पापकी समानताकी मुख्यता कर ‘बंधहं मोक्खहं हेउ णिउ’ इत्यादि चौदह दोहे
हैं, और शुद्धोपयोगके स्वरूपकी मुख्यताकर प्रक्षेपकोंके बिना इकतालीस दोहे पर्यंत व्याख्यान
है
उन इकतालीस दोहोंमें से प्रथम ही ‘सुद्धहं संजमु’ इत्यादि पाँच दोहा तक शुद्धोपयोगके
व्याख्यानकी मुख्यता है, ‘दाणिं लब्भइ’ इत्यादि पंद्रह दोहा पर्यंत वीतराग स्वसंवेदनज्ञानकी