Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 118 (Adhikar 1).

< Previous Page   Next Page >


Page 190 of 565
PDF/HTML Page 204 of 579

 

background image
१९० ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-११८
११८) अप्पादंसणि जिणवरहँ जं सुहु होइ अणंतु
तं सुहु लहइ विराउ जिउ जाणंतउ सिउ संतु ।।११८।।
आत्मदर्शने जिनवराणां यत् सुखं भवति अनन्तम्
तत् सुखं लभते विरागः जीवः जानन् शिवं शान्तम् ।।११८।।
अप्पा इत्यादि अप्पादंसणि निजशुद्धात्मदर्शने जिणवरहं छद्मस्थावस्थायां जिनवराणां
जं सुहु होइ अणंतु यत्सुखं भवत्यनन्तं तं सुहु तत्पूर्वोक्त सुखं लहइ लभते कोऽसौ विराउ
जिउ वीतरागभावनापरिणतो जीवः किं कुर्वन् सन् जाणंतउ जानन्ननुभवन् सन् कम् सिउ
शिवशब्दवाच्यं निजशुद्धात्मस्वभावम् कथंभूतम् संतु शान्तं रागादिविभावरहितमिति अयमत्र
भावार्थः दीक्षाकाले शिवशब्दवाच्यस्वशुद्धात्मानुभवने यत्सुखं भवति जिनवराणां
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिरतो जीवस्तत्सुखं लभत इति ।।११८।।
अथ कामक्रोधादिपरिहारेण शिवशब्दवाच्यः परमात्मा द्रश्यत इत्यभिप्रायं मनसि संप्रधार्य
गाथा११८
अन्वयार्थ :[आत्म दर्शने ] निज शुद्धात्माके दर्शनमें [यत् अनन्तम् सुखं ] जो
अनंत अद्भुत सुख [जिनवराणां ] मुनि-अवस्थामें जिनेश्वरदेवोंके [भवति ] होता है, [तत् सुखं ]
वह सुख [विरागः जीवः ] वीतरागभावनाको परिणत हुआ मुनिराज [शिवं शांतं जानन् ] निज
शुद्धात्मस्वभावको तथा रागादि रहित शांत भावको जानता हुआ [लभते ] पाता है
भावार्थ :निज शुद्धात्माके दर्शनमें जो अनंत अद्भुत सुख मुनि-अवस्थामें
जिनेश्वरदेवोंके होता है, वह सुख वीतरागभावनाको परिणत हुआ मुनिराज निज शुद्धात्मस्वभावको
तथा रागादि रहित शांत भावको जानता हुआ पाता है
दीक्षाके समय तीर्थंकरदेव निज शुद्ध
आत्माको अनुभवते हुए जो निर्विकल्प सुख पाते हैं, वही सुख रागादि रहित निर्विकल्प-
समाधिमें लीन विरक्त मुनि पाते हैं
।।११८।।
आगे काम क्रोधादिके त्यागनेसे शिव शब्दसे कहा गया परमात्मा दीख जाता है, ऐसा
भावार्थदीक्षा समये ‘शिव’ शब्दथी वाच्य एवा स्वशुद्धात्माना अनुभवमां
जिनवरोने जे सुख थाय छे ते सुख वीतराग निर्विकल्प समाधिमां रत जीव (विरक्त मुनि) पामे
छे. ११८.
हवे, कामक्रोधादिना परिहार वडे ‘शिव’ शब्दथी वाच्य एवो परमात्मा देखाय छे, एवो