Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 2 (Adhikar 2) Mokshna Vishayno Uttar.

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सिरिगुरु इत्यादि सिरिगुरु हे श्रीगुरो योगीन्द्रदेव अक्खहि कथय मोक्खु मोक्षं
महु मम, न केवलं मोक्षं मोक्खहकारणु मोक्षस्य कारणम् कथंभूतम् तत्थु तथ्यम्
मोक्खहं केरउ मोक्षस्य संबन्धि अण्णु अन्यत् किम् फलु फलम् एतत्त्रयेन ज्ञातेन
किं भवति जें जाणउं येन त्रयस्य व्याख्यानेन जानाम्यहं कर्ता कम् परमत्थ
परमार्थमिति तद्यथा प्रभाकरभट्टः श्रीयोगीन्द्रदेवान् विज्ञाप्य मोक्षं मोक्षफलं
मोक्षकारणमिति त्रयं पृच्छतीति भावार्थः ।।१।।
अथ तदेव त्रयं क्रमेण भगवान् कथयति
१२८) जोइय मोक्खु वि मोक्ख-फलु पुच्छिउ मोक्खहँ हेउ
सो जिण-भासिउ णिसुणि तुहुँ जेण वियाणहि भेउ ।।२।।
योगिन् मोक्षोऽपि मोक्षफलं पृष्टं मोक्षस्य हेतुः
तत् जिनभाषितं निशृणु त्वं येन विजानासि भेदम् ।।२।।
जोइय इत्यादि जोइय हे योगिन् मोक्खु वि मोक्षोऽपि मोक्ख-फलु मोक्षफलं पुच्छिउ
भावार्थ :प्रभाकरभट्ट श्री योगींद्रदेवसे बिनती करके मोक्ष, मोक्षका कारण और
मोक्षका फल इन तीनोंको पूँछते हैं ।।१।।
अब श्रीगुरु उन्हीं तीनोंको क्रमसे कहते हैं
गाथा
अन्वयार्थ :[योगिन् ] हे योगी, तूने [मोक्षोऽपि ] मोक्ष और [मोक्षफलं ] मोक्षका
फल तथा [मोक्षस्य ] मोक्षका [हेतुः ] कारण [पुष्टं ] पूँछा, [तत् ] उसको [जिनभाषितं ]
जिनेश्वरदेवके कहे प्रमाण [त्वं ] तू [निशृणु ] निश्चयकर सुन, [येन ] जिससे कि [भेदम् ]
भेद [विजानासि ] अच्छीतरह जान जावे
।।
भावार्थ :श्रीयोगींद्रदेव गुरु, शिष्यसे कहते हैं कि हे प्रभाकरभट्ट; योगी शुद्धात्माकी
भावार्थप्रभाकरभट्ट श्री योगीन्द्रदेवने विनंती करीने मोक्ष, मोक्षफळ अने मोक्षनुं
कारण ए त्रणने पूछे छे. १.
भगवान श्री गुरु ए त्रणेयनुं कथन क्रमपूर्वक कहे छेः
भावार्थश्री योगीन्द्रदेव कहे छे के हे प्रभाकरभट्ट! हुं शुद्ध आत्मानी उपलब्धि
२०२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२