Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Dvitiya-Mahadhikar Gatha: 1 (Adhikar 2) Mokshani Babatama Prashna.

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द्वितीयमहाधिकारः
अत ऊर्ध्वं स्थलसंख्याबहिर्भूतान् प्रक्षेपकान् विहाय चतुर्दशाधिकशतद्वय प्रमितैर्दोहक-
सूत्रैर्मोक्षमोक्षफलमोक्षमार्गप्रतिपादनमुख्यत्वेन द्वितीयमहाधिकारः प्रारभ्यते तत्रादौ सूत्रदशक-
पर्यन्तं मोक्षमुख्यतया व्याख्यानं करोति तद्यथा
१२७) सिरिगुरु अक्खहि मोक्खु महु मोक्खहँ कारणु तत्थु
मोक्खहँ केरउ अण्णु फलु जेँ जाणउँ परमत्थु ।।१।।
श्रीगुरो आख्याहि मोक्षं मम मोक्षस्य कारणं तथ्यम्
मोक्षस्य संबन्धि अन्यत् फलं येन जानामि परमार्थम् ।।१।।
द्वितीय महाधिकार
इसके बाद प्रकरणको संख्याके बाहर अर्थात् क्षेपकोंके सिवाय दोसौ चौदह दोहा
सूत्रोंसे मोक्ष, मोक्षफल और मोक्ष-मार्गके कथनकी मुख्यतासे दूसरा महा अधिकार आरंभ
करते हैं उसमें भी पहले दस दोहों तक मोक्षकी मुख्यतासे व्याख्यान करते हैं
गाथा
अन्वयार्थ :[श्रीगुरो ] हे श्रीगुरु, [मम ] मुझे [मोक्षं ] मोक्ष [तथ्यम् मोक्षस्य
कारणं ] सत्यार्थ मोक्षका कारण, [अन्यत् ] और [मोक्षस्य संबंधि ] मोक्षका [फलं ] फल
[आख्याहि ] कृपाकर कहो [येन ] जिससे कि मैं [परमार्थं ] परमार्थको [जानामि ] जानूँ
।।
द्वितीय महाधिाकार
त्यार पछी स्थळ संख्याथी बहिर्भूत (प्रकरणनी संख्याथी बहार) प्रक्षेपकोने छोडीने बसो
चौद दोहकसूत्रोथी मोक्ष, मोक्षफळ अने मोक्षमार्गना कथननी मुख्यताथी बीजो महाधिकार शरू
करवामां आवे छेः
तेमां पण पहेलां दस दोहकसूत्रो सुधी मोक्षनी मुख्यताथी व्याख्यान करे छे. ते आ
प्रमाणेः
अधिकार-२ः दोहा-१ ]परमात्मप्रकाशः [ २०१