Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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धम्महं इत्यादि धम्महं धर्मस्य धर्माद्वा अत्थहं अर्थस्य अर्थाद्वा कामहवि कामस्यापि
कामाद्वा एयहं सयलहं एतेषां सकलानां संबन्धित्वेन एतेभ्यो वा सकाशात् मोक्खु मोक्षं उत्तमु
पभणहिं उत्तमं विशिष्टं प्रभणन्ति
के कथयन्ति णाणि ज्ञानिनः जिय हे जीव कस्मादुत्तमं
प्रभणन्ति मोक्षम् अण्णें अन्येन धर्मार्थकामादिना जेण येन कारणेन ण सोक्खु नास्ति
परमसुखम् इति तद्यथाधर्मशब्देनात्र पुण्यं कथ्यते अर्थशब्देन तु पुण्यफलभूतार्थो राज्यादि-
विभूतिविशेषः, कामशब्देन तु तस्यैव राज्यस्य मुख्यफलभूतः स्त्रीवस्त्रगंध माल्यादिसंभोगः
एतेभ्यस्त्रिभ्यः सकाशान्मोक्षमुत्तमं कथयन्ति के ते वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानिनः
कस्मात् आकुलत्वोत्पादकेन वीतरागपरमानन्दसुखामृतरसास्वादविपरीतेन धर्मार्थकामादिना
मोक्षादन्येन येन कारणेन सुखं नास्तीति भावार्थः ।।३।।
अथ धर्मार्थकामेभ्यो यद्युत्तमो न भवति मोक्षस्तर्हि तत्त्रयं मुक्त्वा परलोकशब्दवाच्यं मोक्षं
किमिति जिना गच्छन्तीति प्रकटयन्ति
भावार्थ :धर्म शब्दसे यहाँ पुण्य समझना, अर्थ शब्दसे पुण्यका फल राज्य वगैरह
संपदा जानना, और काम शब्दसे उस राज्यका मुख्यफल स्त्री, कपड़े, सुगंधितमाला आदि
वस्तुरूप भोग जानना
इन तीनोंसे परमसुख नहीं हैं, क्लेशरूप दुःख ही है, इसलिये इन सबसे
उत्तम मोक्षको ही वीतरागसर्वज्ञदेव कहते हैं, क्योंकि मोक्षसे जुदा जो धर्म, अर्थ, काम हैं, वे
आकुलताके उत्पन्न करनेवाले हैं, तथा वीतराग, परमानन्दसुखरूप अमृतरसके आस्वादसे
विपरीत हैं, इसलिये सुखके करनेवाले नहीं हैं, ऐसा जानना
।।३।।
आगे धर्म, अर्थ, काम इन तीनोंसे जो मोक्ष उत्तम नहीं होता तो इन तीनोंको छोड़कर
जिनेश्वरदेव मोक्षको क्यों जाते ? ऐसा दिखाते हैं
भावार्थअत्रे ‘धर्म’ शब्दथी पुण्य समजवुं, ‘अर्थ’ शब्दथी पुण्यना फळरूप राज्यादि
विभूति विशेष संपदा समजवी अने ‘काम’ शब्दथी ते राज्यना मुख्य फळरूप स्त्री, वस्त्र, गंध,
माळा आदिनो भोग समजवो. आ त्रण करतां मोक्ष उत्तम छे, एम वीतराग निर्विकल्प
स्वसंवेदनवाळा ज्ञानीओ कहे छे. कारण के आकुळताना उत्पादक, वीतराग-परमानंदरूप
सुखामृतरसना आस्वादथी विपरीत अने मोक्षथी अन्य एवा धर्म, अर्थ अने कामथी सुख थतुं
नथी. ३.
हवे जो धर्म, अर्थ अने कामथी मोक्ष उत्तम न होय तो ते त्रणेयने छोडीने ‘परलोक’
शब्दथी वाच्य एवा मोक्षमां जिनदेवो शा माटे जाय? एम दर्शावे छेः
अहीं, ‘परलोक’ शब्दथी वाच्य एवुं परमात्मध्यान (परमात्मानुं अवलोकन) समजवुं,
पण कायमोक्ष न समजवो.
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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-३