Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 4 (Adhikar 2).

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१३०) जइ जिय उत्तमु होइ णवि एयहँ सयलहँ सोइ
तो किं तिण्णि वि परिहरवि जिण वच्चहिँ पर-लोइ ।।४।।
यदि जीव उत्तमो भवति नैव एतेभ्यः सकलेभ्यः स एव
ततः किं त्रीण्यपि परिहृत्य जिनाः व्रजन्ति परलोके ।।४।।
जइ इत्यादि जइ यदि चेत् जिय हे ज्ाीव उत्तमु होइ णवि उत्तमो भवति नैव केभ्यः
एयहं सयलहं एतेभ्यः पूर्वोक्ते भ्यो धर्मादिभ्यः कतिसंख्योपेतेभ्यः सकलेभ्यः सो वि स एव
पूर्वोक्तो मोक्षः तो ततः कारणात् किं किमर्थं तिण्णि वि परिहरवि त्रीण्यपि परिहृत्य त्यक्त्वा जिण
जिनाः कर्तारः वच्चहिं व्रजन्ति गच्छन्ति
कुत्र गच्छन्ति पर-लोइ परलोकशब्दवाच्ये परमात्मध्याने
न तु कायमोक्षे चेति तथाहिपरलोकशब्दस्य व्युत्पत्त्यर्थः कथ्यते परः उत्कृष्टो
मिथ्यात्वरागादिरहितः केवलज्ञानाद्यनन्तगुणसहितः परमात्मा परशब्देनोच्यते तस्यैवंगुणविशिष्टस्य
गाथा
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, [यदि ] जो [एतेभ्यः सकलेभ्यः ] इन सबोंसे [सः ]
मोक्ष [उत्तमः ] उत्तम [एव ] ही [नैव ] नहीं [भवति ] होता [ततः ] तो [जिनाः ]
श्रीजिनवरदेव [त्रीण्यपि ] धर्म, अर्थ, काम इन तीनोंको [परिहृत्य ] छोड़कर [परलोके ]
मोक्षमें [किं ] क्यों [व्रजंति ] जाते ? इसलिये जाते हैं कि मोक्ष सबसे उत्कृष्ट है
।।
भावार्थ :पर अर्थात् उत्कृष्ट मिथ्यात्व रागादि रहित केवलज्ञानादि अनंत गुण सहित
परमात्मा वह पर है, उस परमात्माका लोक अर्थात् अवलोकन वीतराग परमानंद समरसीभावका
अनुभव वह परलोक कहा जाता है, अथवा परमात्माको परमशिव कहते हैं, उसका जो
अवलोकन वह शिवलोक है, अथवा परमात्माका ही नाम परमब्रह्म है, उसका लोक वह
भावार्थ‘परलोक’ शब्दनो व्युत्पत्ति अर्थ कहे छे. पर अर्थात् उत्कृष्ट, ‘पर’ शब्दथी
मिथ्यात्व रागादि रहित केवळज्ञानादि अनंत गुण सहित परमात्मा समजवो, ते गुणविशिष्ट
परमात्मानुं लोकन-अवलोकन-वीतरागपरमानंदरूप समरसीभावनुं अनुभवन ते लोक छे. ए
प्रमाणे ‘परलोक’ शब्दनो अर्थ छे. अथवा ‘पर’ शब्दथी पूर्वोक्त लक्षणवाळो परमात्मा समजवो.
निश्चयथी ‘परमशिव’ शब्दथी वाच्य एवो मुक्तात्मा ‘शिव’ समजवो, तेनो लोक ते
शिवलोक छे. अथवा ‘परमब्रह्म’ शब्दथी वाच्य एवो मुक्तात्मा परमब्रह्म समजवो, तेनो लोक
ते ब्रह्मलोक छे. अथवा ‘परमविष्णु’ शब्दथी वाच्य एवो मुक्तात्मा विष्णु समजवो, तेनो लोक
ते विष्णुलोक छे. ए प्रमाणे ‘परलोक’ शब्दथी मोक्ष कह्यो छे.
अधिकार-२ः दोहा-४ ]परमात्मप्रकाशः [ २०५