Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 8 (Adhikar 2).

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निरन्तरमभिलषणीयमिति भावार्थः ।।७।।
अथ सर्वेषां परमपुरुषाणां मोक्ष एव ध्येय इति प्रतिपादयति
१३४) हरि-हर-बंभु वि जिणवर वि मुणि-वर-विंद वि भव्व
परम-णिरंजणि मणु धरिवि मुक्खु जि झायहिँ सव्व ।।८।।
हरिहरब्रह्माणोऽपि जिनवरा अपि मुनिवरवृन्दान्यपि भव्याः
परमनिरञ्जने मनः धृत्वा मोक्षं एव ध्यायन्ति सर्वे ।।८।।
हरिहर इत्यादि हरि-हर-बंभु वि हरिहरब्रह्माणोऽपि जिणवर वि जिनवरा अपि मुणि-
वर-विंद वि मुनिवरवृन्दान्यपि भव्व शेषभव्या अपि एते सर्वे किं कुर्वन्ति परम-णिरंजणि
है कि हमेशा मोक्षका ही सुख अभिलाषा करने योग्य है, और संसारपर्याय सब हेय है ।।७।।
आगे सभी महान पुरुषोंके मोक्ष ही ध्यावने योग्य है ऐसा कहते हैं
गाथा
अन्वयार्थ :[हरिहरब्रह्माणोऽपि ] नारायण वा इन्द्र, रुद्र अन्य ज्ञानी पुरुष
[जिनवरा अपि ] श्रीतीर्थंकर परमदेव [मुनिवरवृंदान्यपि ] मुनीश्वरोंके समूह तथा [भव्याः ]
अन्य भी भव्य जीव [परमनिरंजने ] परम निरंजनमें [मनः धृत्वा ] मन रखकर [सर्वे ] सब
ही [मोक्षं ] मोक्षको [एव ] ही [ध्यायंति ] ध्यावते हैं
यह मन विषयकषायोंमें जो जाता है,
उसको पीछे लौटाकर अपने स्वरूपमें स्थिर अर्थात् निर्वाणका साधनेवाला करते हैं
भावार्थ :श्री तीर्थंकरदेव तथा चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव महादेव
इत्यादि सब प्रसिद्ध पुरुष अपने शुद्ध ज्ञान, अखंड स्वभाव जो निज आत्मद्रव्य उसका सम्यक्
अतिशयवाळुं, बाधारहित, विशाळ, वृद्धि-हानि रहित, विषयोथी रहित, निर्द्वन्द्व (द्वन्द्वभावथी
रहित), अन्य द्रव्यनी अपेक्षा वगरनुं, निरुपम, अमित, शाश्वत, सदाकाळ, उत्कृष्ट अने अनंत
सारवाळुं एवुं परमसुख हवे सिद्धभगवानने उत्पन्न थयुं.]
अहीं, आनी ज (मोक्षनी ज) निरंतर अभिलाषा करवा योग्य छे एवो भावार्थ छे. ७.
हवे, सर्व परमपुरुषोए मोक्ष ज ध्याववा योग्य छे, एम कहे छेः
भावार्थहरि, हर आदि बधाय प्रसिद्ध पुरुषो ख्याति, पूजा, लाभ आदि समस्त
विकल्प जाळथी शून्य एवा, शुद्ध, बुद्ध एक स्वभाववाळा निजआत्मद्रव्यनां सम्यक्श्रद्धान,
२१२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-८