Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 9 of 565
PDF/HTML Page 23 of 579

 

background image
भावार्थःजेवी रीते मेघपटलमांथी नीकळेला सूर्यनां किरणोनी प्रभा प्रगट थई
छे तेवी रीते जेओ कर्मपटलना विलय टाणे (कर्मरूपी मेघपटलनो विलय थतां) सकल
विमल केवळज्ञानादि अनंतचतुष्टयनी व्यक्तिरूप, लोकालोकने प्रकाशवाने समर्थ, सर्वप्रकारे
उपादेयभूत कार्यसमयसाररूप परिणम्या छे. कया नयनी विवक्षाथी (तेओ कार्यसमयसाररूप
सिद्धपरमात्मा) थया छे? जेवी रीते धातुपाषाण सुवर्णपर्यायरूप परिणतिनी प्रगटतारूपे थयो
छे तेवी रीते तेओ सिद्धपर्यायरूप परिणतिनी प्रगटतारूपे थया छे, श्री पंचास्तिकाय
(गाथा-२०)मां कह्युं छे केः
पर्यायार्थिकनयथी ‘‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो’’ (जीव अभूतपूर्व सिद्ध थाय छे),
द्रव्यार्थिकनयथी तो जेवी रीते धातुपाषाणमां सुवर्ण शक्तिरूपे रहेल छे तेवी रीते, शक्ति-
अपेक्षाए जीव प्रथमथी ज शुद्ध, बुद्ध एक स्वभाववाळो छे. द्रव्यसंग्रह (गाथा-१३३)मां
जे जाया ये केचन कर्तारो महात्मानो जाता उत्पन्नाः केन कारणभूतेन झाणग्गियए
ध्यानाग्निना किं कृत्वा पूर्वम् कम्मकलंक डहेविकर्मकलङ्कमलान् दग्ध्वा भस्मीकृत्वा
कथंभूताः जाताः णिच्चणिरंजणणाणमय नित्यनिरञ्जनज्ञानमयाः ते परमप्प णवेवि
तान्परमात्मनः कर्मतापन्नान्नत्वा प्रणम्येतितात्पर्यार्थव्याख्यानं समुदायकथनं संपिण्डितार्थ-
निरूपणमुपोद्धातः संग्रहवाक्यं वार्तिकमिति यावत्
इतो विशेषः तद्यथाये जाता उत्पन्ना
मेघपटलविनिर्गतदिनकरकिरणप्रभावात्कर्मपटलविघटनसमये सकलविमलकेवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टय-
व्यक्ति रूपेण लोकालोकप्रकाशनसमर्थेन सर्वप्रकारोपादेयभूतेन कार्यसमयसाररूप परिणताः
कया
नयविवक्षया जाताः सिद्धपर्यायपरिणतिव्यक्त रूपतया धातुपाषाणे सुवर्णपर्यायपरिणतिव्यक्ति वत्
तथा चोक्तं पञ्चास्तिकायेपर्यायार्थिकनयेन ‘‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धाे’’, द्रव्यार्थिकनयेन पुनः
अधिकार-१ः दोहा-१ ]परमात्मप्रकाशः [ ९
भावाथर् :जैसे मेघ-पटलसे बाहर निकली हुई सूर्यकी किरणोंकी प्रभा प्रबल होती
है, उसी तरह कर्मरूप मेघसमूहके विलय होनेपर अत्यंत निर्मल केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयकी
प्रगटतास्वरूप परमात्मा परिणत हुए हैं
अनंतचतुष्टय अर्थात् अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख,
अनंतवीर्य, ये अनंतचतुष्टय सब प्रकार अंगीकार करने योग्य हैं, तथा लोकालोकके प्रकाशनको
समर्थ हैं
जब सिद्धपरमेष्ठी अनंतचतुष्टयरूप परिणमे, तब कार्य-समयसार हुए अंतरात्म
अवस्थामें कारण-समयसार थे जब कार्यसमयसार हुए तब सिद्धपर्याय परिणतिकी प्रगटता
रूपकर शुद्ध परमात्मा हुए जैसे सोना अन्य धातुके मिलापसे रहित हुआ, अपने सोलहवानरूप
प्रगट होता है, उसी तरह कर्म-कलंक रहित सिद्धपर्यायरूप परिणमे तथा पंचास्तिकाय ग्रंथमें
भी कहा हैजो पर्यायार्थिकनयकर ‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो’ अर्थात् जो पहले सिद्धपर्याय