Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 10 (Adhikar 2).

< Previous Page   Next Page >


Page 217 of 565
PDF/HTML Page 231 of 579

 

background image
अथ यस्मिन् मोक्षे पूर्वोक्त मतीन्द्रियसुखमस्ति तस्य मोक्षस्य स्वरूपं कथयति
१३६) जीवहँ सो पर मोक्खु मुणि जो परमप्पय-लाहु
कम्म-कलंक-विमुक्काहँ णाणिय बोल्लहिँ साहू ।।१०।।
जीवानां तं परं मोक्षं मन्यस्व यः परमात्मलाभः
कर्मकलङ्कविमुक्तानां ज्ञानिनः ब्रुवन्ति साधवः ।।१०।।
जीवहं इत्यादि जीवहं जीवानां सो तं पर नियमेन मोक्खु मोक्षं मुणि मन्यस्व जानीहि
हे प्रभाकरभट्ट तं कम् जो परमप्पय-लाहु यः परमात्मलाभः इत्थंभूतो मोक्षः केषां भवति
कम्म-कलंक-विमुक्काहं ज्ञानावरणाद्यष्टविधकर्मकलङ्कविमुक्तानाम् इत्थंभूतं मोक्षं के ब्रुवन्ति
णाणिय बोल्लहिं वीतरागस्वसंवेदनज्ञानिनो ब्रुवन्ति ते के साहू साधवः इति तथाहि
आगे जिस मोक्षमें ऐसा अतींद्रियसुख है, उस मोक्षका स्वरूप कहते हैं
गाथा१०
अन्वयार्थ :हे प्रभाकरभट्ट; जो [कर्मकलंकविमुक्तानां जीवानां ] कर्मरूपी
कलंकसे रहित जीवोंको [यः परमात्मलाभः ] जो परमात्मकी प्राप्ति है [तं परं ] उसीको
नियमसे तू [मोक्षं मन्यस्व ] मोक्ष जान, ऐसा [ज्ञानिनः साधवः ] ज्ञानवान् मुनिराज [ब्रुवंति ]
कहते हैं, रत्नत्रयके योगसे मोक्षका साधन करते हैं, इससे उनका नाम साधु है
भावार्थ :केवलज्ञानादि अनंतगुण प्रगटरूप जो कार्यसमयसार अर्थात् शुद्ध
परमात्माका लाभ वह मोक्ष है, यह मोक्ष भव्यजीवोंके ही होता है भव्य कैसे हैं कि पुत्र
कलत्रादि परवस्तुओंके ममत्वको आदि लेकर सब विकल्पोंसे रहित जो आत्मध्यान उससे
अनंत अने अविच्छिन्न (अतूटक छे.) ९.
हवे, जे मोक्षमां पूर्वोक्त अतीन्द्रिय सुख छे ते मोक्षनुं स्वरूप कहे छेः
भावार्थपुत्र, कलत्रादि परवस्तुओना ममत्वथी मांडीने समस्त विकल्पोथी रहित
ध्यानथी जेओ भावकर्म द्रव्यकर्मरूपी कर्मकलंकथी रहित थया छे एवा भव्य जीवोने केवळज्ञानादि
अनंतगुणनी व्यक्तिरूप कार्यसमयसारभूत परमात्मानी प्राप्ति ते खरेखर मोक्ष छे, एम
साधुज्ञानीओ कहे छे.
१ पाठान्तरःसाधवः इति = रत्नत्रयवेष्टमेन
मोक्षसाधका = साधव इति ।
अधिकार-२ः दोहा-१० ]परमात्मप्रकाशः [ २१७