जं इत्यादि । जं यत् बोल्लइ ब्रूते । कोऽसौ कर्ता । ववहारु-णउ व्यवहारनयः । यत्
किं ब्रूते । दंसणु णाणु चरित्तु सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं तं पूर्वोक्तं भेदरत्नत्रयस्वरूपं परियाणहि
परि समन्तात् जानीहि । जीव तुहुं हे जीव त्वं कर्ता । जें येन भेदरत्नत्रयपरिज्ञानेन परु
होहि परः उत्कृष्टो भवसि त्वम् । पुनरपि किंविशिष्टस्त्वम् । पवित्तु पवित्रः सर्वजनपूज्य इति ।
तद्यथा । हे जीव सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूपनिश्चयरत्नत्रयलक्षणनिश्चयमोक्षमार्गसाधकं व्यवहार-
मोक्षमार्गं जानीहि । त्वं येन ज्ञातेन कथंभूतो भविष्यसि । परंपरया पवित्रः परमात्मा भविष्यसि
इति । व्यवहारनिश्चयमोक्षमार्गस्वरूपं कथ्यते । तद्यथा । वीतरागसर्वज्ञप्रणीतषड्द्रव्यादिसम्यक्-
श्रद्धानज्ञानव्रताद्यनुष्ठानरूपो व्यवहारमोक्षमार्गः निजशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपो निश्चय-
चारित्रम् ] दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों को [ब्रूते ] कहता है, [तत् ] उस व्यवहाररत्नत्रयको
[त्वं ] तू [परिजानीहि ] जान, [येन ] जिससे कि [परः पवित्रः ] उत्कृष्ट अर्थात् पवित्र
[भवसि ] होवे ।
भावार्थ : — हे जीव, तू तत्त्वार्थका श्रद्धान, शास्त्रका ज्ञान, और अशुभ क्रियाओंका
त्यागरूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र व्यवहारमोक्ष – मार्गको जान, क्योंकि ये निश्चयरत्नत्रयरूप
निश्चयमोक्ष – मार्गके साधक हैं, इनके जाननेसे किसी समय परम पवित्र परमात्मा हो जायगा ।
पहले व्यवहाररत्नत्रयकी प्राप्ति हो जावे, तब ही निश्चयरत्नत्रयकी प्राप्ति हो सकती है, इसमें
संदेह नहीं है । जो अनन्त सिद्ध हुए और होवेंगे वे पहले व्यवहाररत्नत्रयको पाकर
निश्चयरत्नत्रयरूप हुए । व्यवहार साधन है, और निश्चय साध्य है । व्यवहार और निश्चय
मोक्ष – मार्गका स्वरूप कहते हैं — वीतराग सर्वज्ञदेवके कहे हुए छह द्रव्य, सात तत्त्व, नौ
पदार्थ, पंचास्तिकाय, इनका श्रद्धान, इनके स्वरूपका ज्ञान और शुभ क्रियाका आचरण, यह
व्यवहारमोक्ष – मार्ग है, और निज शुद्ध आत्माका सम्यक् श्रद्धान स्वरूपका ज्ञान, और
स्वरूपका आचरण यह निश्चयमोक्ष – मार्ग है । साधनके बिना सिद्धि नहीं होती, इसलिये
भावार्थः — हे जीव! तुं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप निश्चयरत्नत्रयस्वरूप निश्चय-
मोक्षमार्गना साधक एवा व्यवहारमोक्षमार्गने जाण – के जेने जाणवाथी तुं परंपराए पवित्र
परमात्मा थईश.
व्यवहारनिश्चयमोक्षमार्गनुं स्वरूप कहे छे. ते आ प्रमाणे – वीतरागसर्वज्ञप्रणीत छ
द्रव्यादिनुं सम्यक्श्रद्धान, तेमनुं सम्यग्ज्ञान अने व्रतादिनुं अनुष्ठानरूप व्यवहारमोक्षमार्ग छे, निज
शुद्ध आत्मानां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्अनुष्ठानरूप निश्चयमोक्षमार्ग छे; अथवा
व्यवहारमोक्षमार्ग साधक छे; निश्चयमोक्षमार्ग साध्य छे.
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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-१४