Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 14 (Adhikar 2).

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चारित्रमोहोदयात् पुनर्वीतरागचारित्ररूपं निर्विकल्पशुद्धात्म सत्तावलोकनमपि न संभवतीति
भावार्थः
निश्चयेनाभेदरत्नत्रयपरिणतो निजशुद्धात्मैव मोक्षमार्गो भवतीत्यस्मिन्नर्थे संवाद-
गाथामाह‘‘रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं मुइत्तु अण्णदवियम्हि तम्हा तत्तियमइओ होदि हु
मोक्खस्स कारणं आदा ।।’’ ।।१३।।
अथ भेदरत्नत्रयात्मकं व्यवहारमोक्षमार्गं दर्शयति
१४०) जं बोल्लइ ववहारु-णउ दंसणु णाणु चरित्तु
तं परियाणहि जीव तुहुँ जेँ परु होहि पवित्तु ।।१४।।
यद् ब्रूते व्यवहारनयः दर्शनं ज्ञानं चारित्रम्
तत् परिजानीहि जीव त्वं येन परः भवसि पवित्रः ।।१४।।
रुचिरूप सम्यग्दर्शन भी उसके नहीं है, और चारित्रमोहके उदयसे वीतराग चारित्ररूप निर्विकल्प
शुद्धात्माका सत्तावलोकन भी उसके कभी नहीं है
तात्पर्य यह है, निश्चयकर अभेदरत्नत्रयको
परिणत हुआ निज शुद्धात्मा ही मोक्षका मार्ग है ऐसी ही द्रव्यसंग्रहमें साक्षीभूत गाथा कही
है ‘‘रयणत्तयं’’ इत्यादि उसका अर्थ ऐसा है कि रत्नत्रय आत्माको छोड़कर अन्य (दूसरी)
द्रव्योंमें नहीं रहता, इसलिये मोक्षका कारण उन तीनमयी निज आत्मा ही है ।।१३।।
आगे भेदरत्नत्रयस्वरूपव्यवहार वह परम्पराय मोक्षका मार्ग है, ऐसा दिखलाते हैं
गाथा१४
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, [व्यवहारनयः ] व्यवहारनय [यत् ] जो [दर्शनं ज्ञानं
होवाथी ‘एक शुद्धात्मा ज उपादेय छे’ एवुं रुचिरूप सम्यग्दर्शन ज होतुं नथी, अने
चारित्रमोहना उदयथी वीतरागचारित्ररूप निर्विकल्प शुद्धात्मसत्तावलोकन पण तेने संभवतुं नथी,
एवो भावार्थ छे.
निश्चयनयथी अभेदरत्नत्रय परिणत निजशुद्धात्मा ज मोक्षमार्ग छे एवा अर्थना संवादनी
गाथा (द्रव्यसंग्रहनी गाथा ४०) कहे छे के‘‘रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं भुइत्तु अण्णदवियम्हि तम्हा
तत्तियमइओ होदि हु मोक्खस्स कारणं आदा ।।’’ (अर्थ :आत्मा सिवाय अन्य द्रव्यमां रत्नत्रय
रहेतां नथी ते कारणे रत्नत्रयमयी आत्मा ज खरेखर मोक्षनुं कारण छे.) १३.
हवे, भेदरत्नत्रयात्मक व्यवहारमोक्षमार्गने दर्शावे छेः
अधिकार-२ः दोहा-१४ ]परमात्मप्रकाशः [ २२३