Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 17 (Adhikar 2).

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तथापि शुद्धनिश्चयेन शुद्धात्मानुभूति रूपस्य वीतरागसम्यक्त्वस्य नित्यानन्दैकस्वभावो
निजशुद्धात्मैव विषयो भवतीति
।।१६।।
अथ तेषामेव षड्द्रव्याणां संज्ञां कथयति चेतनाचेतनविभागं च कथयति
१४३) जीउ सचेयणु दव्वु मुणि पंच अचेयण अण्ण
पोग्गलु धम्माहम्मु णहु कालेँ सहिया भिण्ण ।।१७।।
जीवः सचेतनं द्रव्यं मन्यस्व पञ्च अचेतनानि अन्यानि
पुद्गलः धर्माधर्मौ नभः कालेन सहितानि भिन्नानि ।।१७।।
जीउ इत्यादि जीउ सचेयणु दव्वु चिदानन्दैकस्वभावो जीवश्चेतनाद्रव्यं भवति मुणि
मन्यस्व जानीहि त्वम् पंच अचेयण पञ्चाचेतनानि अण्ण जीवादन्यानि तानि कानि
कारण हैं, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर शुद्धात्मानुभूतिरूप वीतरागसम्यक्त्वका कारण नित्य आनंद
स्वभाव निज शुद्धात्मा ही है
।।१६।।
आगे उन छह द्रव्योंके नाम कहते हैं
गाथा१७
अन्वयार्थ :हे शिष्य, तू [जीवः सचेतनं द्रव्यं ] जीव चेतनद्रव्य है, ऐसा [मन्यस्व ]
जान, [अन्यानि ] और बाकी [पुद्गलः धर्माधर्मौ ] पुद्गल धर्म, अधर्म, [नभः ] आकाश
[कालेन सहिता ] और काल सहित जो [पंच ] पाँच हैं, वे [अचेतनानि ] अचेतन हैं और
[अन्यानि ] जीवसे भिन्न हैं, तथा ये सब [भिन्नानि ] अपने
अपने लक्षणोंसे आपसमें भिन्न
(जुदा-जुदा) हैं, काल सहित छह द्रव्य हैं, कालके बिना पाँच अस्तिकाय हैं ।।
भावार्थ :सम्यक्त्व दो प्रकारका है, एक सरागसम्यक्त्व दूसरा वीतरागसम्यक्त्व,
सरागसम्यक्त्वका लक्षण कहते हैं प्रशम अर्थात् शान्तिपना, संवेग अर्थात् जिनधर्मकी रुचि तथा
निजशुद्धात्म ज छे. १६.
हवे, ते छ द्रव्योनां नाम कहे छे अने तेमनो चेतन अने अचेतन एवो विभाग कहे
छेः
भावार्थचिदानंद ज जेनो एक स्वभाव छे एवो जीव चेतनद्रव्य छे अने जे
जीवद्रव्यथी अन्य छे अने पोतपोतानां लक्षणथी परस्पर जुदां छे एवो पुद्गल, धर्म, अधर्म,
२३० ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-१७