Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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पोग्गलु धम्माहम्मु णहु पुद्गलधर्माधर्मनभांसि कथंभूतानि तानि कालें सहिया कालद्रव्येण
सहितानि
पुनरपि कथंभूतानि भिण्ण स्वकीयस्वकीयलक्षणेन परस्परं भिन्नानि इति तथाहि
द्विधा सम्यक्त्वं भण्यते सरागवीतरागभेदेन सरागसम्यक्त्वलक्षणं कथ्यते प्रशम-
संवेगानुकम्पास्तिक्याभिव्यक्ति लक्षणं सरागसम्यक्त्वं भण्यते, तदेव व्यवहारसम्यक्त्वमिति तस्य
विषयभूतानि षड्द्रव्याणीति
वीतरागसम्यक्त्वं निजशुद्धात्मानुभूतिलक्षणं वीतरागचारित्राविनाभूतं
तदेव निश्चयसम्यक्त्वमिति अत्राह प्रभाकरभट्टः निजशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं
निश्चयसम्यक्त्वं भवतीति बहुधा व्याख्यातं पूर्वं भवद्भिः, इदानीं पुनः वीतरागचारित्राविनाभूतं
निश्चयसम्यक्त्वं व्याख्यातमिति पूर्वापरविरोधः कस्मादिति चेत्
निजशुद्धात्मैवोपादेय इति
रुचिरूपं निश्चयसम्यक्त्वं गृहस्थावस्थायां तिर्थंकरपरमदेवभरतसगररामपाण्डवादीनां विद्यते, न च
जगतसे अरुचि, अनुकंपा परजीवोंको दुःखी देखकर दया भाव और आस्तिक्य अर्थात् देव-गुरु-
धर्मकी तथा छह द्रव्योंकी श्रद्धा इन चारोंका होना वह व्यवहारसम्यक्त्वरूप सरागसम्यक्त्व है,
और वीतरागसम्यक्त्व जो निश्चयसम्यक्त्व वह निजशुद्धात्मानुभूतिरूप वीतरागचारित्रसे तन्मयी
है
यह कथन सुनकर प्रभाकरभट्टने प्रश्न किया हे प्रभो, निज शुद्धात्मा ही उपादेय है, ऐसी
रुचिरूप निश्चयसम्यक्त्वका कथन पहले तुमने अनेक बार किया, फि र अब वीतरागचारित्रसे
तन्मयी निश्चयसम्यक्त्व है, वह व्याख्यान करते हैं, सो यह तो पूर्वापर विरोध है
क्योंकि जो
निज शुद्धात्मा ही उपादेय हैं, ऐसी रुचिरूप निश्चयसम्यक्त्व तो गृहस्थमें तीर्थंकर परमदेव भरत
चक्रवर्ती और राम, पांडवादि बड़े
बड़े पुरुषोंके रहता है, लेकिन उनके वीतरागचारित्र नहीं है
आकाश, काळसहित पांचद्रव्यो अचेतन छे; एम तुं जाण.
सम्यक्त्व बे प्रकारनुं छे, एक सराग सम्यक्त्व, बीजुं वीतराग सम्यक्त्व.
सराग सम्यक्त्वनुं स्वरूप कहेवामां आवे छे. प्रशम, संवेग, अनुकंपा अने आस्तिक्यनी
अभिव्यक्ति लक्षणवाळुं सराग सम्यक्त्व छे, ते ज व्यवहार सम्यक्त्व छे. तेनां विषयभूत छ
द्रव्यो छे. वीतराग चारित्रनी साथे अविनाभावी, निजशुद्धात्मानी अनुभूतिस्वरूप वीतराग-
सम्यक्त्व छे ते ज निश्चयसम्यक्त्व छे.
आ कथन सांभळीने अहीं प्रभाकरभट्ट पूछे छे के हे प्रभु! ‘एक निजशुद्ध आत्मा ज
उपादेय छे’ एवी रुचिरूप निश्चयसम्यक्त्व छे एम आपे पूर्वे अनेकवार कह्युं छे अने अहीं
आप वीतरागचारित्रनी साथे अविनाभूत निश्चयसम्यक्त्व होय छे एम आपे कह्युं, तो तेमां
पूर्वापर विरोध आवे छे. तो केवी रीते विरोध आवे छे एम कहो, तो तेनुं कारण आ छे के
निजशुद्ध आत्मा ज उपादेय छे एवी रुचिरूप निश्चयसम्यक्त्व गृहस्थावस्थामां तीर्थंकर परमदेव,
भरतचक्रवर्ती, सगरचक्रवर्ती, राम, पांडव आदि महापुरुषोने होय छे पण तेमने वीतरागचारित्र
अधिकार-२ः दोहा-१७ ]परमात्मप्रकाशः [ २३१