Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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कालं मन्यस्व द्रव्यं त्वं वर्तनालक्षणं एतत्
रत्नानां राशिः विभिन्नः यथा तस्य अणूनां तथा भेदः ।।२१।।
कालु इत्यादि कालु कालं मुणिज्जहि मन्यस्व जानीहि किं जानीहि दव्वु कालसंज्ञं
द्रव्यम् कथंभूतम् वट्टण-लक्खणु वर्तनालक्षणं स्वयमेव परिणममाणानां द्रव्याणां
बहिरङ्गसहकारिकारणम् किंवदिति चेत् कुम्भकारचक्रस्याधस्तनशिलावदिति एउ एतत्
प्रत्यक्षीभूतं तस्य कालद्रव्यस्यासंख्येयप्रमितस्य परस्परभेदविषये दृष्टान्तमाह रयणहं रासि रत्नानां
राशिः कथंभूतः विभिण्ण विभिन्नः विशेषेण स्वरूपव्यवधानेन भिन्नः जिम यथा तसु तस्य
कालद्रव्यस्य अणुयहं अणूनां कालाणूनां तह तथा भेउ भेदः इति अत्राह शिष्यः समय
एव निश्चयकालः, अन्यन्निश्चयकालसंज्ञं कालद्रव्यं नास्ति अत्र परिहारमाह
गाथा२१
अन्वयार्थ :[त्वं ] हे भव्य, तू [एतत् ] इस प्रत्यक्षरूप [वर्तनालक्षणं ]
वर्तनालक्षणवालेको [कालं ] कालद्रव्य [मन्यस्व ] जान अर्थात् अपने आप परिणमते हुए
द्रव्योंको कुम्हारके चक्रकी नीचेकी सिलाकी तरह जो बहिरंग सहकारीकारण है, यह कालद्रव्य
असंख्यात प्रदेशप्रमाण है
[यथा ] जैसे [रत्नानां राशिः ] रत्नोंकी राशि [विभिन्नः ] जुदारूप
है, सब रत्न जुदा जुदा रहते हैंमिलते नहीं हैं, [यथा ] उसी तरह [तस्य ] उस कालके
[अणूनां ] कालकी अणुओंका [भेदः ] भेद है
भावार्थ :एक कालाणुसे दूसरा कालाणु नहीं मिलता यहाँ पर शिष्यने प्रश्न किया
कि समय ही निश्चयकाल है, अन्य निश्चयकाल नामवाला द्रव्य नहीं है ? इसका समाधान
श्रीगुरु करते हैं
समय वह कालद्रव्यकी पर्याय है, क्योंकि विनाशको पाता है ऐसा ही
भावार्थहे भव्य! वर्तनालक्षणवाळुं आ प्रत्यक्ष काळ नामनुं द्रव्य तुं जाण. अर्थात्
जेवी रीते कुंभारना चाकने तेने फरवामां नीचेना पथ्थरनुं पड बहिरंग सहकारी कारण छे तेवी
रीते स्वयमेव परिणमतां द्रव्योने तेना परिणमनमां काळ द्रव्य बहिरंग सहकारी कारण छे.
काळद्रव्यना असंख्य प्रदेशोना परस्पर भेदना विषयमां द्रष्टांत कहे छे. जेवी रीते रत्नोनी
राशि विभिन्न छे. बधा रत्नो पोतपोतानां विशेष स्वरूपव्यवधानथी (स्वरूपनी भिन्नताथी) जुदां
जुदां छे
तेवी रीते काळद्रव्यना असंख्य जेटला कालाणुओ परस्पर जुदा छे.
प्रश्नसमय ज निश्चयकाळ छे, अन्य निश्चयकाळ नामनुं द्रव्य नथी.
तेनो परिहारसमय तो विनश्वर होवाथी पर्याय छे (श्री पंचास्तिकायमां) समयनुं
२३८ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२१