समयस्तावत्पर्यायः । कस्मात् । विनश्वरत्वात् । तथा चोक्तं समयस्य विनश्वरत्वम् — ‘‘समओ
उप्पण्णध्वंसी’’ इति । स च पर्यायो द्रव्यं विना न भवति । कस्य द्रव्यस्य भवतीति विचार्यते
यदि पुद्गलद्रव्यस्य पर्यायो भवति तर्हि पुद्गलपरमाणुपिण्डनिष्पन्नघटादयो यथा मूर्ता भवन्ति तथा
अणोरण्वन्तरव्यतिक्रमणाज्जातः समयः, चक्षुःसंपुटविघटनाज्जातो निमिषः, जलभाजनहस्तादि-
व्यापाराज्जाता घटिका, आदित्यबिम्बदर्शनाज्जातो दिवसः, इत्यादि कालपर्याया मूर्ता दृष्टिविषयाः
प्राग्भवन्ति । कस्मात् । पुद्गलद्रव्योपादानकारणजातत्वाद् घटादिवत् इति । तथा चोक्त म् ।
उपादानकारणसदृशं कार्यं भवति मृत्पिण्डाद्युपादानकारणजनितघटादिवदेव न च तथा
समयनिमिषघटिकादिवसादिकालपर्याया मूर्ता दृश्यन्ते । यैः पुनः पुद्गलपरमाणुमन्दगतिगमन-
श्रीपंचास्तिकायमें कहा है ‘‘समओ उप्पण्णपद्धंसी’’ अर्थात् समय उत्पन्न होता है और नाश होता
है । इससे जानते हैं कि समय पर्याय द्रव्यके बिना हो नहीं सकता । किस द्रव्यका पर्याय है,
इस पर अब विचार करना चाहिये । यदि पुद्गलद्रव्यकी पर्याय मानी जावे, तो जैसे पुद्गल
परमाणुओंसे उत्पन्न हुए घटादि मूर्तीक हैं, वैसे समय भी मूर्तीक होना चाहिये, परंतु समय
अमूर्तीक है, इसलिये पुद्गलकी पर्याय तो नहीं है । पुद्गलपरमाणु आकाशके एक प्रदेशसे दूसरे
प्रदेशको जब गमन होता है, सो समय – पर्याय कालकी है, पुद्गलपरमाणुके निमित्तसे होती हैं,
नेत्रोंका मिलना तथा विघटना उससे निमेष होता है, जल – पात्र तथा हस्तादिके व्यापारसे घटिका
होती है, और सूर्यबिम्बके उदयसे दिन होता है, इत्यादि कालकी पर्याय हैं, पुद्गलद्रव्यके
निमित्तसे होती हैं, पुद्गल इन पर्यायोंका मूलकारण नहीं है, मूलकारण काल है । जो पुद्गल
मूलकारण होता तो समयादिक मूर्तीक होते । जैसे मूर्तीक मिट्टीके ढेलेसे उत्पन्न घड़े वगैर मूर्तीक
विनश्वरपणुं कह्युं छे ‘समओ उप्पणध्वंसी’ (अर्थः — समय ‘उत्पन्नध्वंसी छे – समय उत्पन्न थाय
छे अने नाश पामे छे.)
वळी, ते पर्याय द्रव्य विना होतो नथी. तो हवे समय कया द्रव्यनो पर्याय छे ते विचारीए.
जो समय पुद्गलद्रव्यनो पर्याय होय तो पुद्गलपरमाणुपिंडथी बनेल घटादि जेवी रीते मूर्त होय
छे तेवी रीते एक प्रदेशथी बीजा प्रदेश सुधी परमाणुना गमनथी उत्पन्न थतो समय, आंखना
बीडवा-उघडवाथी उत्पन्न थतो निमिष, जलभाजन अने हस्तादि व्यापारथी उत्पन्न थती घडी,
सूर्यना बिंबना उदयथी उत्पन्न थतो दिवस इत्यादि काळपर्यायो मूर्त होवा जोईए, अने मूर्त
होवाथी द्रष्टिना विषय थवा जोईए, कारण के तेओ पुद्गलद्रव्यना उपादान कारणथी उत्पन्न
थयेला मान्या छे. वळी कह्युं छे के – ‘उपादानकारणसदृशं कार्यं भवति’ उपादान कारणना जेवुं ज कार्य
थाय छे. जेवी रीते माटीना पिंडादि उपादान कारण जेवुं घटादि कार्य मूर्त थाय छे, पण ते प्रमाणे
समय, निमिष, घडी, दिवस आदि काळपर्यायो मूर्त जोवामां आवता नथी.
अधिकार-२ः दोहा-२१ ]परमात्मप्रकाशः [ २३९