नयनपुटविघटनजलभाजनहस्तादिव्यापारदिनकरबिम्बगमनादिभिः पुद्गलपर्यायभूतैः क्रियाविशेषैः
समयादिकालपर्यायाः परिच्छिद्यन्ते, ते चाणुव्यतिक्रमणादयः तेषामेव समयादिकालपर्यायाणां
व्यक्ति निमित्तत्वेन बहिरङ्गसहकारिकारणभूता एव ज्ञातव्या न चोपादानकारणभूता घटोत्पत्तौ
कुम्भकारचक्रचीवरादिवत् । तस्माद् ज्ञायते तत्कालद्रव्यममूर्तमविनश्वरमस्तीति तस्य तत्पर्यायाः
समयनिमिषादय इति । अत्रेदं तु कालद्रव्यं सर्वप्रकारोपादेयभूतात् शुद्धबुद्धैकस्वभावाज्जीव-
द्रव्याद्भिन्नत्वाद्धेयमिति तात्पर्यार्थः ।।२१।।
अथजीवपुद्गलकालद्रव्याणि मुक्त्वा शेषधर्माधर्माकाशान्येकद्रव्याणीति निरूपयति —
१४८) जीउ वि पुग्गलु कालु जिय ए मेल्लेविणु दव्व ।
इयर अखंड वियाणि तुहुँ अप्प-पएसहिँ सव्व ।।२२।।
होते हैं, वैसे समयादिक मूर्तीक नहीं हैं । इसलिये अमूर्तद्रव्य जो काल उसकी पर्याय हैं, द्रव्य
नहीं हैं, कालद्रव्य अणुरूप अमूर्तीक अविनश्वर है, और समयादिक पर्याय अमूर्तीक है, परंतु
विनश्वर हैं, अविनश्वरपना द्रव्यमें ही है, पर्यायमें नहीं है, यह निश्चयसे जानना । इसलिये
समयादिकको कालद्रव्यकी पर्याय ही कहना चाहिये, पुद्गलकी पर्याय नहीं हैं, पुद्गलपर्याय
मूर्तीक है । सर्वथा उपादेय शुद्ध-बुद्ध केवलस्वभाव जो जीव उससे भिन्न कालद्रव्य है, इसलिये
हेय है, यह सारांश हुआ ।।२१।।
आगे जीव, पुद्गल, काल ये तीन द्रव्य अनेक हैं, और धर्म, अधर्म, आकाश ये तीन
द्रव्य एक हैं, ऐसा कहते हैं । —
वळी पुद्गलपरमाणुनुं मंदगतिथी गमन, नयनपुटविघटन (आंखनो पलकार),
जळभाजन तथा हस्तादिनो व्यापार, सूर्यबिंबनुं गमन वगेरे पुद्गलपर्यायभूत क्रिया विशेषोथी
समयादि काळपर्यायो जणाय छे ते परमाणुना व्यतिक्रमादि क्रियाविशेषोने काळना ते समयादि
पर्यायोनी ज प्रगटताना निमित्तपणे मात्र बहिरंग सहकारी कारणभूत ज जाणवा, पण जेवी
रीते घडानी उत्पत्तिमां कुंभार, चाकडो, चीवरादि उपादानकारण नथी तेवी रीते तेमने
उपादानकारणभूत न जाणवा. माटे जणाय छे के ते काळद्रव्य अमूर्त अने अविनश्वर छे. समय,
निमिष, आदि काळद्रव्यना पर्यायो छे.
अहीं, आ काळद्रव्य पण सर्वप्रकारे उपादेयभूत, शुद्ध, बुद्ध ज जेनो एक स्वभाव छे
एवा जीवद्रव्यथी भिन्न होवाथी, हेय छे एवो तात्पर्यार्थ छे. २१.
हवे जीव, पुद्गल अने काळ आ त्रण द्रव्यो सिवायना बाकीना धर्म, अधर्म अने आकाश
आ त्रण द्रव्यो एक एक छे; एम कहे छेः —
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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२२