Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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भावार्थपुद्गलद्रव्य तो, स्वसंवेदनथी विलक्षण विभावपरिणाममां रत जीवने
व्यवहारथी शरीर, वाणी, मन अने श्वासोच्छ्वास निपजावे छे अने धर्मद्रव्य उपचरित असद्भूत
व्यवहारनयथी गतिमां सहकारी छे तेम ज अधर्मद्रव्य स्थितिमां सहकारी छे, ते ज व्यवहारनयथी
(उपचरित असद्भूतव्यवहारनयथी) आकाशद्रव्य अवकाशदान आपे छे तेम ज काळद्रव्य
शुभाशुभ परिणामोमां सहकारी छे.
ए प्रमाणे पांच द्रव्योने उपकार (उदासीन निमित्त) पामीने जीव निश्चय-
व्यवहाररत्नत्रयनी भावनाथी भ्रष्ट थयेलो चार गतिनां दुःखने सहे छे, एवो भावार्थ छे. २६.
हवे, ए प्रमाणे निश्चयनयथी पांच द्रव्योनुं स्वरूप दुःखनुं कारण जाणीने हे
किं कुर्वन्ति णियणियकज्जु जणंति निजनिजकार्यं जनयन्ति येन कारणेन निजनिजकार्यं
जनयन्ति चउगइदुक्ख सहंत जिय चतुर्गतिदुःखं सहमानाः सन्तोजीवाः तें संसारु भमंति तेन
कारणेन संसारं भ्रमन्तीति तथा च पुद्गलस्तावज्जीवस्य स्वसंवित्तिलक्षणविभावपरिणामरतस्य
व्यवहारेण शरीरवाङ्मनःप्राणापाननिष्पत्तिं करोति, धर्मद्रव्यं चोपचरितासद्भूतव्यवहारेण
गतिसहकारित्वं करोति, तथैवाधर्मद्रव्यं स्थितिसहकारित्वं करोति, तेनैव व्यवहारनयेन
आकाशद्रव्यमवकाशदानं ददाति, तथैव कालद्रव्यं च शुभाशुभपरिणामसहकारित्वं करोति
एवं
पञ्चद्रव्याणामुपकारं लब्ध्वा जीवो निश्चयव्यवहाररत्नत्रयभावनाच्युतः सन् चतुर्गतिदुःखं सहत इति
भावार्थः
।।२६।।
अथैवं पञ्चद्रव्याणां स्वरूपं निश्चयेन दुःखकारणं ज्ञात्वा हे जीव निजशुद्धात्मो-
आत्मज्ञानसे विपरीत विभाव परिणामोंमें लीन हुए अज्ञानी जीवोंके व्यवहारनयकर शरीर, वचन,
मन, श्वासोश्वास, इन चारोंको उत्पत्ति करता है, अर्थात् मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, रागद्वेषादि
विभावपरिणाम हैं, इन विभाव परिणामोंके योगसे जीवके पुद्गलका सम्बन्ध हैं, और पुद्गलके
संबन्धसे ये हैं, धर्मद्रव्य उपचरितासद्भूत व्यवहारनयकर गतिसहायी है
अधर्मद्रव्य
स्थितिसहकारी है, व्यवहारनयकर आकाशद्रव्य अवकाश (जगह) देता है, और कालद्रव्य शुभ
-अशुभ परिणामोंका सहायी है
इस तरह ये पाँच द्रव्य सहकारी हैं इनकी सहाय पाकर ये
जीव निश्चय व्यवहाररत्नत्रयकी भावनासे रहित भ्रष्ट होते हुए चारों गतियोंके दुःखोंको सहते
हुए संसारमें भटकते हैं, यह तात्पर्य हुआ
।।२६।।
आगे परद्रव्योंका संबंध निश्चयनयसे दुःखका कारण है, ऐसा जानकर हे जीव
१. लौकिकमां ‘उपकार’ अर्थ अन्यनुं भलुं करवुं एवो छे पण ते तात्त्विक अर्थ नथी. ‘उपकार करे
छे’ एनो अहीं तात्त्विक अर्थ ए छे के ‘उदासीन निमित्त थाय छे.’
२५२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२६