Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 26 (Adhikar 2).

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भरेलो छे.
अहीं, ए भावार्थ छे के जो के सर्वद्रव्य एकक्षेत्रावगाहथी रहे छे तोपण शुद्धनिश्चयनयथी
जीवो केवळज्ञानादि अनंत गुणस्वरूपने छोडता नथी अने पुद्गलो वर्णादिस्वरूपने छोडतां नथी
अने बाकीनां द्रव्यो पोतपोतानुं स्वरूप छोडतां नथी. २५.
हवे, बाकीनां पांच द्रव्यो जीवने व्यवहारथी उपकार करे छे, एम कहे छे अने ते ज
जीवने निश्चयथी तेओ ज दुःखनां कारणो छे, एम कहे छेः
शुद्धनिश्चयेन जीवाः केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्वरूपं न त्यजन्ति पुद्गलाश्च वर्णादिस्वरूपं न त्यजन्ति
शेषद्रव्याणि च स्वकीयस्वकीयस्वरूपं न त्यजन्ति
।।२५।।
अथ जीवस्य व्यवहारेण शेषपञ्चद्रव्यकृतमुपकारं कथयति, तस्यैव जीवस्य निश्चयेन
तान्येव दुःखकारणानि च कथयति
१५२) एयइँ दव्वइँ देहियहँ णियणियकज्जु जणंति
चउ-गइ-दुक्ख सहंत जिय तेँ संसारु भमंति ।।२६।।
एतानि द्रव्याणि देहिनां निजनिजकार्यं जनयन्ति
चतुर्गतिदुःखं सहमानाः जीवाः तेन संसारं भ्रमन्ति ।।२६।।
एयइं इत्यादि एयइं एतानि दव्वइं जीवादन्यद्रव्याणि देहियहं देहिनां संसारिजीवानाम्
एक क्षेत्रावगाहकर रहते हैं, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर जीव केवल ज्ञानादि अनंतगुणरूप अपने
स्वरूपको नहीं छोड़ते हैं, पुद्गलद्रव्य अपने वर्णादि स्वरूपको नहीं छोड़ता, और धर्मादि अन्य
द्रव्य भी अपने अपने स्वरूपको नहीं छोड़ते हैं
।।२५।।
आगे जीवका व्यवहारनयकर अन्य पाँचों द्रव्य उपकार करते हैं, ऐसा कहते हैं, तथा
उसी जीवके निश्चयसे वे ही दुःखके कारण हैं, ऐसा कहते हैं
गाथा२६
अन्वयार्थ :[एतानि ] ये [द्रव्याणि ] द्रव्य [देहिनां ] जीवोंके [निजनिजकार्यं ]
अपने अपने कार्यको [जनयंति ] उपजाते हैं, [तेन ] इस कारण [चतुर्गतिदुःखं सहमानाः
जीवाः ] नरकादि चारों गतियोंके दुःखोंको सहते हुए जीव [संसारं ] संसारमें [भ्रमंति ]
भटकते हैं
भावार्थ :ये द्रव्य जो जीवका उपकार करते हैं, उसको दिखलाते हैं पुद्गल तो
अधिकार-२ः दोहा-२६ ]परमात्मप्रकाशः [ २५१