Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 28 (Adhikar 2).

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तू भेदाभेद रत्नत्रयस्वरूप मोक्षके मार्गमें लगकर परमात्माका अनुभव परमसमरसीभावसे
परिणमनरूप मोक्ष उसमें गमन कर
।।२७।।
आगे व्यवहारनयसे मैंने ये जीवादि द्रव्योंके श्रद्धानरूपको सम्यग्दर्शन कहा है, अब
सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको हे प्रभाकरभट्ट; तू सुन, ऐसा मनमें रखकर यह दोहासूत्र कहते
हैं
गाथा२८
अन्वयार्थ :हे प्रभाकरभट्ट, [मया ] मैंने [व्यवहारेणैव ] व्यवहारनयसे तुझको [एषा
दृष्टिः ] ये सम्यग्दर्शनका स्वरूप [नियमेन कथिता ] अच्छी तरह कहा, [इदानीं ] अब तू
[ज्ञानं चारित्रं ] ज्ञान और चारित्रको [शृणु ] सुन, [येन ] जिसके धारण करनेसे [परमेष्ठिनम्
प्राप्नोषि ] सिद्धपरमेष्ठिके पदको पावेगा
भावार्थ :व्यवहारसम्यक्त्वके कारणभूत छह द्रव्योंका सांगोपांग व्याख्यान करते हैं
अनुभवनरूप-परमसमरसीभावे परिणमनरूप-परलोकनी-मोक्षनी तने प्राप्ति थाय. २७.
हवे, व्यवहारनयथी में जीवद्रव्यादि श्रद्धानरूप आ सम्यग्दर्शन कह्युं, हवे हे
प्रभाकरभट्ट! तुं सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्र सांभळ, एम मनमां राखीने आ दोहासूत्र कहे
छेः
भावार्थहवे व्यवहारसम्यक्त्वना विषयभूत द्रव्योनुं चूलिकारूपे (सांगोपांग, विशेष
स्थित्वा परः परमात्मा तस्यावलोकनमनुभवनं परमसमरसीभावेन परिणमनं परलोको मोक्षस्तत्र
गम्यत इति भावार्थः
।।२७।।
अथेदं व्यवहारेण मया भणितं जीवद्रव्यादिश्रद्धानरूपं सम्यग्दर्शनमिदानीं सम्यग्ज्ञानं चारित्रं
च हे प्रभाकरभट्ट शृणु त्वमिति मनसि धृत्वा सूत्रमिदं प्रतिपादयति
१५४) णियमेँ कहियउ एहु मइँ ववहारेण वि दिट्ठि
एवहिँ णाणु चरित्तु सुणि जेँ पावहि परमेट्ठि ।।२८।।
नियमेन कथिता एषा मया व्यवहारेणापि द्रष्टिः
इदानीं ज्ञानं चारित्रं शृणु येन प्राप्नोषि परमेष्ठिनम् ।।२८।।
णियमें नियमेन निश्चयेन कहियउ कथिता एहु मइं एषा कर्मतापन्ना मया केनैव
२५४ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२८