Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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अधिकार-२ः दोहा-२८ ]परमात्मप्रकाशः [ २५५
ववहारेण वि व्यवहारनयेनैव एषा का दिट्ठि द्रष्टिः द्रष्टिः कोऽर्थः, सम्यक्त्वम् एवहिं
इदानीं णाणु चरित्तु सुणि हे प्रभाकरभट्ट क्रमेण ज्ञानचारित्रद्वयं शृणु येन श्रुतेन किं भवति
जें पावहि येन सम्यग्ज्ञानचारित्रद्वयेन प्राप्नोषि किं प्राप्नोषि परमेट्ठि परमेष्ठिपदं मुक्ति पदमिति
अतो व्यवहारसम्यक्त्वविषयभूतानां द्रव्याणां चूलिकारूपेण व्याख्यानं क्रियते तद्यथा ‘‘परिणाम
जीव मुत्तं सपदेसं एय खित्त किरिया य णिच्चं कारण कत्ता सव्वगदं इदरम्हि यपवेसो ’’
परिणाम इत्यादि ‘परिणाम’ परिणामिनौ जीवपुद्गलौ स्वभावविभावपरिणामाभ्यां शेषचत्वारि
द्रव्याणि जीवपुद्गलवद्विभावव्यञ्जनपर्यायाभावात् मुख्यवृत्त्या पुनरपरिणामीनि इति ‘जीव’
शुद्धनिश्चयनयेन विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं शुद्धचैतन्यं प्राणशब्देनोच्यते तेन जीवतीति जीवः,
व्यवहारनयेन पुनः कर्मोदयजनितद्रव्यभावरूपैश्चतुर्भिः प्राणैर्जीवति जीविष्यति जीवितपूर्वो वा जीवः
कथनरूपे) व्याख्यान करे छे, ते आ प्रमाणेः
‘‘परिणाम जीव मुत्तं सपदेसं एय खित्त किरिया य
णिच्चं कारण कत्ता सव्वगदं इदरम्हि यपवेसो ।।’’
(अर्थपरिणाम, जीव, मूर्त, सप्रदेश, एक, क्षेत्र, क्रिया, नित्य, कारण, कर्ता, सर्वगत,
बीजां द्रव्योमां अप्रवेशपणुं आ बार बोल छ द्रव्यमां उतारवा.) (हवे आ बार बोल छ द्रव्यमां
कई रीते घटे छे, ते कहे छे.)
(१) ‘परिणामपरिणाम आ छ द्रव्योमां जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्यो स्वभाव विभाव
परिणामो वडे परिणामी छे, बाकीनां चार द्रव्यो, तेमां जीवपुद्गलनी जेम विभावव्यंजनपर्यायनो
सद्भाव नहीं होवाथी, मुख्यपणे तो अपरिणामी छे.
(२) ‘जीवजीव शुद्ध निश्चयनयथी ‘प्राण’ शब्दथी ज विशुद्ध-ज्ञानदर्शनस्वभाववाळो शुद्ध
‘‘परिणाम’’ इत्यादि गाथासे इसका अर्थ यह है, कि इन छह द्रव्योंमें विभावपरिणामके
परिणमनेवाले जीव और पुद्गल दो ही हैं, अन्य चार द्रव्य अपने स्वभावरूप तो परिणमते हैं,
लेकिन जीव पुद्गलकी तरह विभावव्यंजनपर्यायके अभावसे विभावपरिणमन नहीं है, इसलिये
मुख्यतासे परिणामी दो द्रव्य ही कहे हैं, शुद्धनिश्चयनयकर शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभाव जो शुद्ध
चैतन्यप्राण उनसे जीता है, जीवेगा, पहले जी आया, और व्यवहारनयकर इंद्री, बल, आयु,
श्वासोश्वासरूप द्रव्यप्राणोंकर जीता है, जीवेगा, पहले जी चुका, इसलिये जीवको ही जीव कहा
गया है, अन्य पुद्गलादि पाँच द्रव्य अजीव हैं, स्पर्श, रस, गंध, वर्णवाली मूर्ति सहित मूर्तीक
एक पुद्गलद्रव्य ही है, अन्य पाँच अमूर्तीक हैं
उनमेंसे धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये चारों
१. पाठान्तरःका = का कथिताः