Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-२८
पुद्गलादिपञ्चद्रव्याणि पुनरजीवरूपाणि ‘मुत्तं’ अमूर्तशुद्धात्मनो विलक्षणा स्पर्शरसगन्धवर्णवती
मूर्तिरुच्यते तद्भावान्मूर्तः पुद्गलः जीवद्रव्यं पुनरनुपचरितासद्भूतव्यवहारेणमूर्तमपि
शुद्धनिश्चयनयेनामूर्तम् धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि चामूर्तानि ‘सपदेसं’ लोकमात्रप्रमिता-
संख्येयप्रदेशलक्षणं जीवद्रव्यमादि कृत्वा पञ्चद्रव्याणि पञ्चास्तिकायसंज्ञानि सप्रदेशानि कालद्रव्यं
पुनर्बहुप्रदेशलक्षणकायत्वाभावादप्रदेशम्
‘एय’ द्रव्यार्थिकनयेन धर्माधर्माकाशद्रव्याण्येकानि
चैतन्य कहेवामां आवे छे, तेनाथी जे जीवे छे ते जीव छे, ज्यारे व्यवहारनयथी तो कर्मोदयजनित
द्रव्यभावरूप चार प्राणोथी जे जीवे छे, जीवशे अने पूर्वे जीवतो हतो ते जीव छे, अने पुद्गलादि
पांच द्रव्यो अजीवरूप छे.
(३) ‘मुत्तंमुत्तं अमूर्त शुद्ध आत्माथी विलक्षण स्पर्श-रस-गंध-वर्णवाळुं जे होय ते मूर्त
कहेवाय छे, ते भाववाळुं होवाथी पुद्गल मूर्त छे, ज्यारे जीवद्रव्य तो अनुपचरित असद्भूत
व्यवहारनयथी मूर्त छे तोपण शुद्धनिश्चयनयथी अमूर्त छे, अने धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ
ए चार द्रव्यो अमूर्त छे.
(४) ‘सपदेससपदेसं’ लोकमात्र प्रमाण जेटला असंख्यात प्रदेशी जीवद्रव्यथी मांडीने
पंचास्तिकाय नामना पांच द्रव्यो सप्रदेशी छे, ज्यारे काळद्रव्य तो बहुप्रदेश जेनुं लक्षण छे एवा
कायत्वनो अभाव होवाथी अप्रदेश छे.
(५) ‘एय द्रव्यार्थिकनयथी धर्म, अधर्म अने आकाश ए त्रण द्रव्यो एक एक छे, ज्यारे
जीव, पुद्गल अने काळ ए त्रण द्रव्यो अनेक छे.
तो अमूर्तीक हैं, तथा जीवद्रव्य अनुपचरितअसद्भूतव्यवहारनयकर मूर्तिक भी कहा जाता है,
क्योंकि शरीरको धारण कर रहा है, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर अमूर्तीक ही है, लोकप्रमाण
असंख्यातप्रदेशी जीवद्रव्यको आदि लेकर पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय हैं, वे सप्रदेशी हैं, और
कालद्रव्य बहुप्रदेश स्वभावकायपना न होनेसे अप्रदेशी है, धर्म, अधर्म, आकाश ये तीन द्रव्य
एक एक हैं, और जीव, पुद्गल, काल ये तीनों अनेक हैं
जीव तो अनंत हैं, पुद्गल अनंतानंत
हैं, काल असंख्यात हैं, सब द्रव्योंको अवकाश देनेमें समर्थ एक आकाश ही है, इसलिये आकाश
क्षेत्र कहा गया है, बाकी पाँच द्रव्य अक्षेत्री हैं, एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमें गमन करना, वह चलन
हलनवती क्रिया कही गई है, यह क्रिया जीव पुद्गल दोनोंके ही है, और धर्म, अधर्म, आकाश,
काल ये चार द्रव्य निष्क्रिय हैं, जीवोंमें भी संसारी जीव हलन
चलनवाले हैं, इसलिये क्रियावंत
हैं, और सिद्धपरमेष्ठी निःक्रिय हैं, उनके हलन-चलन क्रिया नहीं है, द्रव्यार्थिकनयसे विचारा जावे
तो सभी द्रव्य नित्य हैं, अर्थपर्याय जो षट्गुणी हानिवृद्धिरूप स्वभावपर्याय है, उसकी अपेक्षा
सब ही अनित्य हैं, तो भी विभावव्यंजनपर्याय जीव और पुद्गल इन दोनोंकी है, इसलिये इन