Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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अधिकार-२ः दोहा-२८ ]परमात्मप्रकाशः [ २५७
भवन्ति जीवपुद्गलकालद्रव्याणि पुनरनेकानि भवन्ति ‘खेत्त’ सर्वद्रव्याणामवकाशदानसामर्थ्यात्
क्षेत्रमाकाशमेकं शेषपञ्चद्रव्याण्यक्षेत्राणि ‘किरिया य’ क्षेत्रात्क्षेत्रान्तरगमनरूपा परिस्पन्दवती
चलनवती क्रिया सा विद्यते ययोस्तौ क्रियावन्तौ जीवपुद्गलौ धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि
पुनर्निष्क्रियाणि
‘णिच्चं’ धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि यद्यप्यर्थपर्यायत्वेनानित्यानि तथापि
मुख्यवृत्त्या विभावव्यञ्जनपर्यायाभावात् नित्यानि द्रव्यार्थिकनयेन च, जीवपुद्गलद्रव्ये पुनर्यद्यपि
द्रव्यार्थिकनयापेक्षया नित्ये तथाप्यगुरुलघुपरिणति
रूपस्वभावपर्यायापेक्षया विभावव्यञ्जन-
पर्यायापेक्षया चानित्ये ‘कारण’ पुद्गलधर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि व्यवहारनयेन जीवस्य शरीर-
वाङ्मनःप्राणापानादिगतिस्थित्यवगाहवर्तनाकार्याणि कुर्वन्ति इति कारणानि भवन्ति, जीवद्रव्यं
(६) ‘खेत्तखेत्त सर्व द्रव्योने अवकाश देवानुं सामर्थ्य होवाथी आकाश एक ज क्षेत्र छे,
ज्यारे बाकीना पांच द्रव्यो तो अक्षेत्र छे.
(७) ‘किरिया यकिरिया य एक क्षेत्रथी बीजा क्षेत्रमां गमनरूप परिस्पंदवाळी-चलनवाळी-क्रिया
ते जेमने वर्ते छे एवा जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्यो क्रियावान छे, ज्यारे धर्म, अधर्म आकाश
अने काळ ए चार द्रव्यो तो निष्क्रिय छे.
(८) ‘णिच्चणिच्च धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए चार द्रव्यो जोके अर्थपर्यायनी
अपेक्षाए अनित्य छे, तोपण-मुख्यपणे तेमने विभावव्यंजनपर्याय नहि होवाथी द्रव्यार्थिक नयथी
नित्य छे ज्यारे जीवपुद्गलद्रव्य तो-जोके द्रव्यार्थिकनयनी अपेक्षाए नित्य छे तोपण अगुरु-
लघुपरिणतिरूप स्वभावपर्यायनी अपेक्षाए अने विभावव्यंजनपर्यायनी अपेक्षाए अनित्य छे.
(९) ‘कारणकारण पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए पांच द्रव्यो, व्यवहार-
नयथी शरीर, वाणी, मन, श्वासोच्छ्वास आदिरूप, गति, स्थिति, अवगाहन, वर्तनारूप जीवनां
दोनोंको ही अनित्य कहा है, अन्य चार द्रव्य विभावके अभावसे नित्य ही हैं, इस कारण यह
निश्चयसे जानना कि चार नित्य हैं, दो अनित्य हैं, तथा द्रव्यकर सब ही नित्य हैं, कोई भी
द्रव्य विनश्वर नहीं है, जीवको पाँचों ही द्रव्य कारणरूप हैं, पुद्गल तो शरीरादिकका कारण
है, धर्म-अधर्मद्रव्य गति स्थितिके कारण हैं, आकाशद्रव्य अवकाश देनेका कारण है, और काल
वर्तनाका सहायी है
ये पाँचों द्रव्य जीवको कारण हैं, और जीव उनको कारण नहीं है यद्यपि
जीवद्रव्य अन्य जीवोंको गुरु शिष्यादिरूप परस्पर उपकार करता है, तो भी पुद्गलादि पाँच
द्रव्योंको अकारण है, और ये पाँचों कारण हैं, शुद्ध पारिणामिक परमभावग्राहक
शुद्धद्रव्यार्थिकनयकर यह जीव यद्यपि बंध, मोक्ष, पुण्य, पापका कर्ता नहीं है, तो भी
अशुद्धनिश्चयनयकर शुभ-अशुभ उपयोगसे परिणत हुआ पुण्य-पापके बंधका कर्ता होता है, और
पाठान्तरःरूप = स्वरूप