अधिकार-२ः दोहा-३६ ]परमात्मप्रकाशः [ २७७
पुनश्चोक्तं श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवैः मोक्षप्राभृते — ‘‘अज्ज वि तिरयणसुद्धा अप्पा झाऊण लहहिं
इंदत्तं । लोयंतियदेवत्तं तत्थ चुदा णिव्वुदिं जंति ।।’’ । अयमत्र भावार्थः । यथादित्रिकसंहनन-
लक्षणवीतरागयथाख्यातचारित्राभावेऽपीदानीं शेषसंहननेनापि शेषचारित्रमाचरन्ति तपस्विनः
तथादिकत्रिकसंहननलक्षणशुक्लध्यानाभावेऽपि शेषसंहनेनापि शेषचारित्रमाचरन्ति तपस्विनः तथा
त्रिकसंहननलक्षणशुक्लध्यानाभावेऽपि शेषसंहनेनापि संसारस्थितिच्छेदकारणं परंपरया मुक्ति कारणं
च धर्मध्यानमाचरन्तीति ।।३६।।
अन्योने आचरो. वळी मोक्षप्राभृत (गाथा ७७)मां श्रीकुंदकुंदाचार्यदेवे पण कह्युं छे के –
‘‘अज्ज वि तिरयणसुद्धा अप्पा झाऊण लहहिं इंदत्तं । लोयंतियदेवत्तं तत्थ चुदा णिव्वुदिं जंति ।’’
(अर्थः — आजेय (आ पंचमकाळमां पण) विमळत्रिरत्नमुनिओ (शुद्ध रत्नत्रयवाळा
मुनिओ, रत्नत्रय वडे शुद्ध एवा मुनिओ) आत्मानुं ध्यान करीने इन्द्रपदने पामे छे
अथवा लोकान्तिकदेव थाय छे अने त्यांथी च्यवी (मनुष्य थईने) मोक्षे जाय छे.
अहीं, आ भावार्थ छे के आदिना त्रण संहननवाळा वीतराग यथाख्यात चारित्रना
अभावमां पण आजेय तपस्वीओ बाकीना संहनन वडे (यथासंभव) बाकीनां चारित्रने
आचरे छे तथा पहेला त्रण संहननवाळा शुक्लध्यानना अभावमां पण बाकीनां संहनन
वडे संसारस्थितिने छेदवानुं कारण अने परंपराए मुक्तिनुं कारण एवुं धर्मध्यान आचरे
छे. ३६.
करो । फि र श्रीकुंदकुंदाचार्यने भी मोक्षपाहुड़में ऐसा ही कहा है ‘‘अज्ज वि’’ उसका तात्पर्य
यह है, कि अब भी इस पंचमकालमें मन, वचन, कायकी शुद्धतासे आत्माका ध्यान करके
यह जीव इन्द्र पदको पाता है, अथवा लौकांतिकदेव होता है, और वहाँसे च्युत होकर
मनुष्यभव धारण करके मोक्षको पाता है । अर्थात् जो इस समय पहलेके तीन संहनन तो
नहीं हैं, परंतु अर्धनाराच, कीलक, सूपाटिका, ये आगेके तीन हैं, इन तीनोंसे सामायिक
छेदोपस्थापनाका आचरण करो, तथा धर्मध्यानको आचरो । धर्मध्यानका अभाव छहों संहननोंमें
नहीं है, शुक्लध्यान पहलेके तीन संहननोंमें ही होता है, उनमें भी पहला पाया (भेद)
उपशमश्रेणीसंबंधी तीनों संहननोंमें है, और दूसरा, तीसरा, चौथा पाया प्रथम संहननवाले ही
के होता है, ऐसा नियम है । इसलिये अब शुक्लध्यानके अभावमें भी हीन संहननवाले इस
धर्मध्यानको आचरो । यह धर्मध्यान परम्पराय मुक्तिका मार्ग है, संसारकी स्थितिका छेदनेवाला
है । जो कोई नास्तिक इस समय धर्मध्यानका अभाव मानते हैं, वे झूठ बोलनेवाले हैं, इस
समय धर्मध्यान है, शुक्लध्यान नहीं है ।।३६।।