Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 41 (Adhikar 2).

< Previous Page   Next Page >


Page 283 of 565
PDF/HTML Page 297 of 579

 

background image
अधिकार-२ः दोहा-४० ]परमात्मप्रकाशः [ २८३
एक्कु वि अत्थि णवि रत्नत्रयमध्ये नास्तेकमपि जिणवरु एउ भणेइ जिनवरो वीतरागः सर्वज्ञ
एवं भणतीति
तथाहि निश्चयनयेन निजशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं सम्यग्दर्शनं तस्यैव
निजशुद्धात्मसंवित्तिसमुत्पन्नवीतरागपरमानन्दमधुररसास्वादोऽयमात्मा निरन्तराकुलत्वोत्पादकत्वात्
कटुकरसास्वादाः कामक्रोधादय इति भेदज्ञानं तस्यैव भवति स्वरूपे चरणं चारित्रमिति
वीतरागचारित्रं तस्यैव भवति
तस्य कस्य वीतरागनिर्विकल्पपरमसामायिकभावनानुकूलं
निर्दोषिपरमात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपं यः समभावं करोतीति भावार्थः ।।४०।।
अथ यदा ज्ञानी जीव उपशाम्यति तदा संयतो भवति कामक्रोधादिकषायवशं गतः
पुनरसंयतो भवतीति निश्चिनोति
१६७) जाँवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ
होइ कसायहँ वसि गयउ जीउ असंजदु सो ।।४१।।
रसस्वादवाळा आ काम क्रोधादि छे एवुं भेदज्ञान तेने ज होय छे, ‘स्वरूपमां चरवुं ते
चारित्र’ एवुं वीतराग चारित्र तेने ज होय छे के जे वीतराग निर्विकल्प परमसामायिकनी
भावनाने अनुकूळ निर्दोष परमात्मानां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्अनुचरणरूप
समभाव करे छे. ४०.
हवे, जे समये ज्ञानी जीव उपशमभावमां स्थित होय छे ते समये संयत होय
छे अने जे समये कामक्रोधादि कषायने वश होय छे त्यारे ते असंयत होय छे, एम
नक्की करे छेः
मधुर रसका आस्वाद उस स्वरूप आत्मा है, तथा हमेशा आकुलताके उपजानेवाले काम
क्रोधादिक हैं, वे महा कटुक रसरूप अत्यंत विरस हैं, ऐसा
जानना, वह सम्यग्ज्ञान और स्वरूपके आचरणरूप वीतरागचारित्र भी उसी समभावके धारण
करनेवालेके ही होता है, जो मुनीश्वर वीतराग निर्विकल्प परम सामायिकभावकी भावनाके
अनुकूल (सन्मुख) निर्दोष परमात्माके यथार्थ श्रद्धान, यथार्थ ज्ञान और स्वरूपका यथार्थ
आचरणरूप अखंडभाव धारण करता है, उसीके परमसमाधिकी सिद्धि होती है
।।४०।।
आगे ऐसा कहते हैं कि जिस समय ज्ञानी जीव शांतभावको धारण करता है,
उसी समय संयमी होता है, तथा जब क्रोधादि कषायके वश होता है, तब असंयमी होता
है
१ पाठान्तरःवशं गत = संगतः