Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 42 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-४२ ]परमात्मप्रकाशः [ २८५
अथ येन कषाया भवन्ति मनसि तं मोहं त्यजेति प्रतिपादयति
१६८) जेण कसाय हवंति मणि सो जिय मिल्लहि मोहु
मोह-कसाय-विवज्जयउ पर पावहि सम-बोहु ।।४२।।
येन कषाया भवन्ति मनसि तं जीव मुञ्च मोहम्
मोहकषायविवर्जितः परं प्राप्नोषि समबोधम् ।।४२।।
जेण इत्यादि जेण येन वस्तुना वस्तुनिमित्तेन मोहेन वा किं भवति कसाय हवंति
क्रोधादिकषाया भवन्ति क्व भवन्ति मणि मनसि साे तं जिय हे जीव मिल्लहि मुञ्च कम्
तं पूर्वोक्ते मोहु मोहं मोहनिमित्तपदार्थं चेति पश्चात् किं लभसे त्वम् मोह-कषाय-विवज्जियउ
मोहकषायविवर्जितः सन् पर परं नियमेन पावहि प्राप्नोषि कं कर्मतापन्नम् सम-बोहु समबोधं
असंयत होय छे अने जे काळे कषायने उपशमावे छे ते काळे जीव संयत होय छे.] ४१.
हवे, जेनाथी (जे मोहथी) मनमां कषाय थाय छे ते मोहने तुं छोड. एम वर्णन करे
छेः
भावार्थनिर्मोह एवा निजशुद्धात्माना ध्यान वडे निर्मोह एवा स्वशुद्धात्मतत्त्वथी
विपरीत मोहने हे जीव! तुं छोड, के जे मोहथी अथवा मोहना निमित्तभूत वस्तुथी निष्कषाय
परमात्मतत्त्वना विनाशक एवा क्रोधादि कषायो थाय छे. मोहकषायनो अभाव थतां तुं रागादि
है, तब संयमी कहलाता है ।।४१।।
आगे जिस मोहसे मनमें कषायें होतीं हैं, उस मोहको तू छोड़, ऐसा वर्णन करते हैं
गाथा४२
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव; [येन ] जिस मोहसे अथवा मोहके उत्पन्न करनेवाली
वस्तुसे [मनसि ] मनमें [कषायाः ] कषाय [भवंति ] होवें, [तं मोहम् ] उस मोहको अथवा
मोह निमित्तक पदार्थको [मुंच ] छोड़, [मोहकषायविवर्जितः ] फि र मोहको छोड़नेसे मोह
कषाय रहित हुआ तू
[परं ] नियमसे [समबोधम् ] राग द्वेष रहित ज्ञानको [प्राप्नोषि ] पावेगा
भावार्थ :निर्मोह निज शुद्धात्माके ध्यानसे निर्मोह निज शुद्धात्मतत्त्वसे विपरीत
मोहको हे जीव छोड़ जिस मोहसे अथवा मोह करनेवाले पदार्थसे कषाय रहित
परमात्मतत्त्वरूप ज्ञानानंद स्वभावके विनाशक क्रोधादि कषाय होते हैं, इन्हींसे संसार है,
इसलिये मोह कषायके अभाव होने पर ही रागादि रहित निर्मल ज्ञानको तू पा सकेगा
ऐसा