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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-४६
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या निशा सकलानां देहिनां योगी तस्यां जागर्ति ।
यत्र पुनः जागर्ति सकलं जगत् तां निशां मत्वा स्वपिति ।।४६❃१।।
जा णिसि इत्यादि । जा णिसि या वीतरागपरमानन्दैकसहजशुद्धात्मावस्था
मिथ्यात्वरागाद्यन्धकारावगुण्ठिता सती रात्रिः प्रतिभाति । केषाम् । सयलहं देहियहं सकलानां
स्वशुद्धात्मसंवित्तिरहितानां देहिनाम् । जोग्गिउ तहिं जग्गेइ परमयोगी वीतरागनिर्विकल्प-
स्वसंवेदनज्ञानरत्नप्रदीपप्रकाशेन मिथ्यात्वरागादिविकल्पजालान्धकारमपसार्य स तस्यां तु
शुद्धात्मना जागर्ति । जहिं पुणु जग्गइ सयलु जगु यत्र पुनः शुभाशुभमनोवाक्काय-
परिणामव्यापारे परमात्मतत्त्वभावनापराङ्मुखः सन् जगज्जागर्ति स्वशुद्धात्मपरिज्ञानरहितः
भावार्थः — स्वशुद्धात्माना संवेदनथी रहित सर्व संसारी जीवोने, जे वीतराग
परमानंदरूप एक सहज शुद्धात्मानी अवस्था मिथ्यात्व, रागादि अंधकारथी छवायेली रात लागे
छे ते शुद्धात्मानी अवस्थामां तो ते परमयोगी, वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानरूपी
रत्नदीपकना प्रकाशथी मिथ्यात्व, रागादि विकल्पजाळरूप अंधकारने छोडीने शुद्धस्वरूप वडे जागे
छे.
वळी, स्वशुद्धात्माना परिज्ञानथी रहित सकळ अज्ञानीजन परमात्मतत्त्वनी भावनाथी
परान्मुख थतो जे शुभाशुभ मन-वचन-कायाना परिणामना व्यापारमां जागे छे, तेने रात्रि मानीने
गाथा – ४६❃१
अन्वयार्थ : — [या ] जो [सकलानां देहिनां ] सब संसारी जीवोंकी [निशा ] रात है,
[तस्यां ] उस रात में [योगी ] परम तपस्वी [जागर्ति ] जागता है, [पुनः ] और [यत्र ] जिसमें
[सकलं जगत् ] सब संसारी जीव [जागर्ति ] जाग रहे हैं, [तां ] उस दशाको [निशां मत्वा ]
योगी रात मानकर [स्वपिति ] योग निद्रामें सोता है ।
भावार्थ : — जो जीव वीतराग परमानंदरूप सहज शुद्धात्माकी अवस्थासे रहित हैं,
मिथ्यात्व रागादि अंधकार से मंडित हैं, इसलिये इन सबोंको वह परमानंद अवस्था रात्रिके समान
मालूम होती है । कैसे ये जगतके जीव हैं, कि आत्म – ज्ञानसे रहित हैं, अज्ञानी हैं, और अपने
स्वरूपसे विमुख हैं, जिनके जाग्रत – दशा नहीं हैं, अचेत सो रहे हैं, ऐसी रात्रि में वह परमयोगी
वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानरूपी रत्नदीपके प्रकाशसे मिथ्यात्व रागादि विकल्प – जालरूप
अंधकारको दूरकर अपने स्वरूपमें सावधान होनेसे सदा जागता है । तथा शुद्धात्माके ज्ञानसे
रहित शुभ, अशुभ मन, वचन, कायके परिणमनरूप व्यापारवाले स्थावर जंगम सकल अज्ञानी
जीव परमात्मतत्त्वकी भावनासे परान्मुख हुए विषय – कषायरूप अविद्यामें सदा सावधान हैं, जाग