वन्दननिन्दनप्रतिक्रमणादिकं कुर्वाणस्यापि भावसंयमो नास्ति इत्यभिप्रायः ।।६६।। एवं मोक्षमोक्ष-
फलमोक्षमार्गादिप्रतिपादकद्वितीयमहाधिकारमध्ये निश्चयनयेन पुण्यपापद्वयं समानमित्यादि-
व्याख्यानमुख्यत्वेन चतुर्दशसूत्रस्थलं समाप्तम् । अथानन्तरं शुद्धोपयोगादिप्रतिपादनमुख्यत्वेनैका-
धिकचत्वारिंशत्सूत्रपर्यन्तं व्याख्यानं करोति । तत्रान्तरस्थलचतुष्टयं भवति । तद्यथा । प्रथमसूत्र-
पञ्चकेन शुद्धोपयोगव्याख्यानं करोति, तदनन्तरं पञ्चदशसूत्रपर्यन्तं वीतरागस्वसंवेदनज्ञान-
मुख्यत्वेन व्याख्यानम्, अत ऊर्ध्वं सूत्राष्टकपर्यन्तं परिग्रहत्यागमुख्यत्वेन व्याख्यानं, तदनन्तरं
त्रयोदशसूत्रपर्यन्तं केवलज्ञानादिगुणस्वरूपेण सर्वे जीवाः समाना इति मुख्यत्वेन व्याख्यानं
करोति । तद्यथा ।
रागादिविकल्पनिवृत्तिस्वरूपशुद्धोपयोगे संयमादयः सर्वे गुणास्तिष्ठन्तीति प्रति-
पादयति —
अधिकार-२ः दोहा-६६ ]परमात्मप्रकाशः [ ३२९
क्या कर सकती है ? कुछ नहीं कर सकती ।।६६।।
इस तरह मोक्ष, मोक्ष – फल, मोक्षमार्गादिका कथन करनेवाले दूसरे महा अधिकारमें
निश्चयनयसे पुण्य, पाप दोनों समान हैं, इस व्याख्यानकी मुख्यतासे चौदह दोहे कहे । आगे
शुद्धोपयोगके कथनकी मुख्यतासे इकतालीस दोहोंमें व्याख्यान करते हैं, और आठ दोहोंमें
परिग्रहत्यागके व्याख्यानकी मुख्यतासे कहते हैं, तथा तेरह दोहोंमें केवलज्ञानादि गुणस्वरूपकर
सब जीव समान हैं, ऐसा व्याख्यान है ।
अब प्रथम ही रागादि विकल्पकी निवृत्तिरूप शुद्धोपयोगमें संयमादि सब गुण रहते हैं,
ऐसा वर्णन करते हैं —
तेने द्रव्यरूप वंदना, निंदा अने प्रतिक्रमणादि करवा छतां पण भावसंयम नथी. ६६.
ए प्रमाणे मोक्ष, मोक्षफळ अने मोक्षमार्गादिना प्रतिपादक बीजा महाधिकारमां निश्चयनयथी
पुण्य, पाप बन्ने समान छे इत्यादि व्याख्याननी मुख्यताथी चौद सूत्रोनुं स्थळ समाप्त थयुं.
त्यार पछी शुद्धोपयोगादिना प्रतिपादननी मुख्यताथी एकतालीस सूत्रो सुधी व्याख्यान करे
छे. तेमां चार अन्तरस्थळ छे ते आ प्रमाणेः — (१) प्रथम पांच गाथासूत्रथी शुद्ध-उपयोगनुं
व्याख्यान करे छे, (२) त्यार पछी पंदर गाथासूत्र सुधी वीतराग-स्वसंवेदनरूप ज्ञाननी मुख्यताथी
व्याख्यान करे छे, (३) त्यार पछी आठ गाथासूत्र सुधी परिग्रहत्यागनी मुख्यताथी व्याख्यान करे
छे, (४) त्यार पछी तेर गाथासूत्र सुधी ‘केवळज्ञानादि गुणस्वरूपथी सर्व जीवो समान छे’ एम
मुख्यपणे व्याख्यान करे छे. ते आ प्रमाणेः —
हवे, प्रथम ज रागादि विकल्पोनी निवृत्तिरूप शुद्धोपयोगमां संयमादि सर्व गुणो रहे छे,
एम कहे छे.