Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 67 (Adhikar 2) Shuddhopayogani Mukhyata.

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१९४) सुद्धहँ संजमु सीलु तउ सुद्धहँ दंसणु णाणु
सुद्धहँ कम्मक्खउ हवइ सुद्धउ तेण पहाणु ।।६७।।
शुद्धानां संयमः शीलं तपः शुद्धानां दर्शनं ज्ञानम्
शुद्धानां कर्मक्षयो भवति शुद्धो तेन प्रधानः ।।६७।।
सुद्धहं इत्यादि सुद्धहं शुद्धोपयोगिनां संजमु इन्द्रियसुखाभिलाषनिवृत्तिबलेन षड्जीव-
निकायहिंसानिवृत्तिबलेनात्मा आत्मनि संयमनं नियमनं संयमः स पूर्वोक्त : शुद्धोपयोगिनामेव
अथवोपेक्षासंयमापहृतसंयमौ वीतरागसरागापरनामानौ तावपि तेषामेव संभवतः अथवा
सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातभेदेन पञ्चधा संयमः सोऽपि लभ्यते
तेषामेव
सीलु स्वात्मना कृत्वा स्वात्मनिवृत्तिर्वर्तनं इति निश्चयव्रतं, व्रतस्य रागादिपरिहारेण
३३० ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-६७
गाथा६७
अन्वयार्थ :[शुद्धानां ] शुद्धोपयोगियोंके ही [संयमः शील तपः ] पाँच इन्द्री छट्ठे
मनको रोकनेरूप संयम, शील और तप [भवति ] होते हैं, [शुद्धानां ] शुद्धोंके ही [दर्शनं ज्ञानम् ]
सम्यग्दर्शन और वीतरागस्वसंवेदनज्ञान और [शुद्धानां ] शुद्धोपयोगियोंके ही [कर्मक्षयः ] कर्मोंका
नाश होता है, [तेन ] इसलिये [शुद्धः ] शुद्धोपयोग ही [प्रधानः ] जगतमें मुख्य है
भावार्थ :शुद्धोपयोगियोंके पाँच इन्द्री छट्ठे मनका रोकना, विषयाभिलाषकी निवृत्ति,
और छह कायके जीवोंकी हिंसासे निवृत्ति, उसके बलसे आत्मामें निश्चल रहना, उसका नाम
संयम
है, वह होता है, अथवा उपेक्षासंयम अर्थात् तीन गुप्तिमें आरूढ़ और उपहृतसंयम अर्थात्
पाँच समितिका पालना, अथवा सरागसंयम अर्थात् शुभोपयोगरूप संयम और वीतरागसंयम
अर्थात् शुद्धोपयोगरूप परमसंयम वह उन शुद्ध चेतनोपयोगियोंके ही होता है
शील अर्थात्
भावार्थ‘संजमु’ इन्द्रियसुखनी अभिलाषानी निवृत्तिना बळथी तथा छ कायना
जीवोनी हिंसानी निवृत्तिना बळथी आत्माथी आत्मामां संयमन-नियमन-(निश्चळ रहेवुं) ते संयम
छे, ते संयम पूर्वोक्त शुद्ध-उपयोगीओने ज होय छे, अथवा उपेक्षा संयम अने अपहृत संयम
के जेनुं बीजुं नाम (अनुक्रमे) वीतराग संयम अने सराग संयम छे ते पण तेमने ज (ते
शुद्धोपयोगीओने ज) होय छे. अथवा सामायिकसंयम, छेदोपस्थापनसंयम परिहारविशुद्धिसंयम,
सूक्ष्मसंपरायसंयम अने यथाख्यातसंयम एवा पांच प्रकारना संयम छे ते पण तेमने ज प्राप्त
होय छे.
‘सीलु’ पोताना आत्मा वडे पोताना आत्मामां वृत्ति अर्थात् वर्तवुं ते निश्चयव्रत छे.