६) केवल-दंसण-णाणमय केवल-सुक्ख-सहाय ।
जिणवर वंदउँ भत्तियए जेहिँ पयासिय भाव ।।६।।
केवलदर्शनज्ञानमयान् केवलसुखस्वभावान् ।
जिनवरान् वन्दे भक्त्या यैः प्रकाशिता भावाः ।।६।।
केवलदर्शनज्ञानमयाः केवलसुखस्वभावा ये तान् जिनवरानहं वन्दे । कया । भक्त्या । यैः
किं कृतम् । प्रकाशिता भावा जीवाजीवादिपदार्था इति । इतो विशेषः । केवल-
ज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयस्वरूपपरमात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुभूतिरूपाभेदरत्नत्रयात्मकं सुखदुःख-
जीवितमरणलाभालाभशत्रुमित्रसमानभावनाविनाभूतवीतरागनिर्विकल्पसमाधिपूर्वं जिनोपदेशं लब्ध्वा
पश्चादनन्तचतुष्टयस्वरूपा जाता ये । पुनश्च किं कृतम् । यैः अनुवादरूपेण जीवादिपदार्थाः
प्रकाशिताः । विशेषेण तु कर्माभावे सति केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्वरूपलाभात्मको मोक्षः,
अधिकार-१ः दोहा-६ ]परमात्मप्रकाशः [ २१
गाथा – ६
अन्वयार्थ : — [केवलदर्शनज्ञानमया: ] जो केवलदर्शन और केवल ज्ञानमयी हैं,
[केवलसुखस्वभावा: ] तथा जिनका केवलसुख ही स्वभाव है और [यै: ] जिन्होंने [भावा: ]
जीवादिक सकल पदार्थ [प्रकाशिता: ] प्रकाशित किये, उनको मैं [भक्त्या ] भक्तिसे [वन्दे ]
नमस्कार करता हूँ ।
भावार्थ : — केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयस्वरूप जो परमात्मतत्त्व है, उसके यथार्थ
श्रद्धान, ज्ञान और अनुभव, इन स्वरूप अभेदरत्नत्रय वह जिनका स्वभाव है, और सुख-दुःख,
जीवित-मरण, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, सबमें समान भाव होनेसे उत्पन्न हुई वीतरागनिर्विकल्प
परमसमाधि उसके कहनेवाले जिनराजके उपदेशको पाकर अनंतचतुष्टयरुप हुए, तथा जिन्होंने
यथार्थ जीवादि पदार्थोंका स्वरूप प्रकाशित किया तथा जो कर्मका अभाव है वह वही
भावार्थः — केवळज्ञानादि अनंतचतुष्टयस्वरूप परमात्मतत्त्वनां सम्यक्श्रद्धान,
सम्यग्ज्ञान, अने सम्यक्अनुभूतिरूप अभेदरत्नत्रयात्मक एवो, सुख-दुःख, जीवित-मरण, लाभ-
अलाभ, शत्रु-मित्र बधा प्रत्ये समान भावना होवानी साथे अविनाभावी वीतराग निर्विकल्प
समाधिपूर्वक जिनोपदेश पामीने जेओ अनंतचतुष्टयस्वरूप थया छे अने जेओए अनुवादरूपे
जीवादि पदार्थो प्रकाश्या छे अने विशेषपणे कर्मनो अभाव थतां केवळज्ञानादि अनंतगुण
स्वरूपनी प्राप्तिरूप जे मोक्ष छे अने शुद्ध आत्मानां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान, अने