Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 79 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-७९ ]परमात्मप्रकाशः [ ३४९
अप्पा इत्यादि अप्पा मिल्लिवि आत्मानं मुक्त्वा कथंभूतम् णाणमउ ज्ञानमयं
केवलज्ञानान्तर्भूतानन्तगुणमयं चित्ति मनसि ण लग्गइ न लगति न रोचते न प्रतिभाति किम्
अण्णु निजपरमात्मस्वरूपादन्यत् अत्रार्थे द्रष्टान्तमाह मरगउ जें परियाणियउ
मरकतरत्नविशेषो येन परिज्ञातः तहुँ तस्य रत्नपरीक्षापरिज्ञानसहितस्य पुरुषस्य कच्चें कउ गण्ण
काचेन किं गणना किमपेक्षा तस्येत्यभिप्रायः ।।७८।।
अथ कर्मफलं भुञ्जानः सन् योऽसौ रागद्वेषं करोति स कर्म बध्नातीति कथयति
२०६) भुंजंतु वि णिय-कम्म-फलु मोहइँ जो जि करेइ
भाउ असुंदरु सुंदरु वि सो पर कम्मु जणेइ ।।७९।।
भुञ्जानोऽपि निजकर्मफलं मोहेन य एव करोति
भावं असुन्दरं सुन्दरमपि स परं कर्म जनयति ।।७९।।
भुंजंतु वि इत्यादि भुंजंतु वि भुञ्जानोऽपि किम् णिय-कम्म-फलु
दृष्टांत यह है, कि [येन ] जिसने [मरकतः ] मरकतमणि (रत्न) [परिज्ञातः ] जान लिया,
[तस्य ] उसको [काचेन ] काँचसे [किं गणनं ] क्या प्रयोजन है ?
भावार्थ :जिसने रत्न पा लिया, उसको काँचके टुकड़ोंकी क्या जरूरत है ? उसी
तरह जिसका चित्त आत्मामें लग गया, उसके दूसरे पदार्थोंकी वाँछा नहीं रहती ।।७८।।
आगे कर्म - फलको भोगता हुआ जो राग-द्वेष करता है, वह कर्मोंको बाँधता है
गाथा७९
अन्वयार्थ :[य एव ] जो जीव [निजकर्मफलं ] अपने कर्मोंके फलको
[भुंजानोऽपि ] भोगता हुआ भी [मोहेन ] मोहसे [असुंदरं सुंदरम् अपि ] भले और बुरे [भावं ]
परिणामोंको [करोति ] करता है, [सः ] वह [परं ] केवल [कर्म जनयति ] कर्मको उपजाता
(बाँधता) है
भावार्थ :वीतराग परम आह्लादरूप शुद्धात्माकी अनुभूतिसे विपरीत जो अशुद्ध
भावार्थजेने रत्न प्राप्त थई गयुं, तेने काचना टुकडाओनी शुं जरूर छे? ते रीते
जेनुं चित्त आत्मामां लागी गयुं तेने बीजा पदार्थोनी वांछा रहेती नथी. ७८.
हवे, कर्मफळने भोगवतो थको जे रागद्वेष करे छे ते कर्म बांधे छे एम कहे छेः