Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 80 (Adhikar 2).

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३५० ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-८०
वीतरागपरमाह्लादरूपशुद्धात्मानुभूतिविपरीतं निजोपार्जितं शुभाशुभकर्मफलं मोहइं निर्मोह-
शुद्धात्मप्रतिकूलमोहोदयेन
जो जि करेइ य एव पुरुषः करोति
कम् भाउ भावं
परिणामम् किंविशिष्टम् असुंदरु सुंदरु वि अशुभं शुभमपि सो पर स एव भावः
कम्मु जणेइ शुभाशुभं कर्म जनयति अयमत्र भावार्थ उदयागते कर्मणि योऽसौ
स्वस्वभावच्युतः सन् रागद्वेषौ करोति स एवः कर्म बध्नाति ।।७९।।
अथ उदयागतेकर्मानुभवे योऽसौ रागद्वेषौ न करोति स कर्म न बध्नातीति कथयति
२०७) भुंजंतु वि णिय-कम्म-फलु जो तहिँ राउ ण जाइ
सो णवि बंधइ कम्मु पुणु संचिउ जेण विलाइ ।।८०।।
भुञ्जानोऽपि निजकर्मफलं यः तत्र रागं न याति
स नैव बध्नाति कर्म पुनः संचितं येन विलीयते ।।८०।।
भावार्थजे पुरुष वीतराग परम आह्लादरूप शुद्ध आत्मानी अनुभूतिथी
विपरीत स्वोपार्जित (पोते उपार्जित करेला) शुभाशुभकर्मना फळने भोगवतो थको पण
निर्मोह एवा शुद्ध आत्माथी प्रतिकूळ मोहोदयथी शुभ-अशुभ (सारा-नरसा) परिणामने करे
छे ते ज (ते भाव ज) शुभाशुभ कर्म उपजावे छे.
अहीं, ए भावार्थ छे के जे कोई स्वभावभावथी च्युत थतो उदयागत कर्ममां राग
-द्वेष करे छे ते ज कर्म बांधे छे. ७९.
हवे, उदयमां आवेला कर्मना अनुभवमां जे राग-द्वेष करतो नथी ते कर्म बांधतो
नथी, एम कहे छेः
रागादिक विभाव उनसे उपार्जन किये गये शुभ-अशुभ कर्म उनके फलको भोगता हुआ जो
अज्ञानी जीव मोहके उदयसे हर्ष-विषाद भाव करता है, वह नये कर्मोंका बंध करता है
सारांश
यह है कि, जो निज स्वभावसे च्युत हुआ उदयमें आये हुए कर्मोंमें राग द्वेष करता है, वही
कर्मोंको बाँधता है
।।७९।।
आगे जो उदय प्राप्त कर्मोंमें राग-द्वेष नहीं करता, वह कर्मोंको भी नहीं बाँधता, ऐसा
कहते हैं
गाथा८०
अन्वयार्थ :[निजकर्मफलं ] अपने बाँधे हुए कर्मोंके फलको [भुंजानोऽपि ] भोगता