Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 82 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-८२ ]परमात्मप्रकाशः [ ३५३
नन्दैकशुद्धात्मनो विलक्षणं पञ्चेन्द्रियविषयसुखाभिलाषरागं मणि मनसि जाम ण मिल्लइ यावन्तं
कालं न मुञ्चति
एत्थु अत्र जगति सो णवि मुच्चइ स जीवो नैव मुच्यते ज्ञानावरणादिकर्मणा
ताम तावन्तं कालं जिय हे जीव
किं कुर्वन्नपि जाणंतु वि वीतरागानुष्ठानरहितः सन्
शब्दमात्रेण जानन्नपि कं जानन् परमत्थु परमार्थशब्दवाच्यनिजशुद्धात्मतत्त्वमिति अयमत्र
भावार्थः निजशुद्धात्मस्वभावज्ञानेऽपि शुद्धात्मोपलब्धिलक्षणवीतरागचारित्रभावनां विना मोक्षं न
लभत इति ।।८१।।
अथ निर्विकल्पात्मभावनाशून्यः शास्त्रं पठन्नपि तपश्चरणं कुर्वन्नपि परमार्थं न
वेत्तीति कथयति
२०९) बुज्झइ सत्थइँ तउ चरइ पर परमत्थु ण वेइ
ताव ण मुंचइ जाम णवि इहु परमत्थु मुणेइ ।।८२।।
बुध्यते शास्त्राणि तपः चरति परं परमार्थं न वेत्ति
तावत् न मुच्यते यावत् नैव एनं परमार्थं मनुते ।।८२।।
भावार्थजे जीव अणुमात्र पणसूक्ष्मपणएक (केवळ) वीतराग सदानंदरूप शुद्ध
आत्माथी विलक्षण पंचेन्द्रियोना विषयसुखनी अभिलाषारूप रागने ज्यां सुधी मनमांथी छोडतो
नथी, त्यां सुधी ते आ संसारमां परमार्थ शब्दथी वाच्य एवा निजशुद्धात्मतत्त्वने वीतराग
अनुष्ठान रहित थयो थको (वीतराग अनुष्ठान विना) केवळ शब्दमात्रथी ज जाणतो थको
ज्ञानावरणादि कर्मथी मूकातो नथी. ए भावार्थ छे के निज शुद्ध आत्मस्वभावनुं ज्ञान होवा छतां
पण शुद्ध आत्मानी प्राप्तिस्वरूप वीतराग चारित्रनी भावना विना मोक्ष मळतो नथी. ८१.
जे निर्विकल्प आत्मभावनाथी शून्य छे ते शास्त्रने भणवा छतां, तपश्चरण करवा छतां
पण परमार्थने जाणतो नथी, एम कहे छेः
इच्छा रखता है, मनमें थोड़ासा भी राग रखता है, वह आगमज्ञानसे आत्माको शब्दमात्र जानता
हुआ भी वीतरागचारित्रकी भावनाके बिना मोक्षको नहीं पाता
।।८१।।
आगे जो निर्विकल्प आत्म - भावनासे शून्य है, वह शास्त्रको पढ़ता हुआ भी तथा
तपश्चरण करता हुआ भी परमार्थको नहीं जानता है, ऐसा कहते हैं
गाथा८२
अन्वयार्थ :[शास्त्राणि ] शास्त्रोंको [बुध्यते ] जानता है, [तपः चरति ] और