३७६ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-९५
इदं प्रत्यक्षीभूतम् । इदं किम् । अच्छुउ कहिं वि कुडिल्लियइ तिष्ठतु कस्यामपि कुडयां शरीरे
सो तसु करइ ण भेउ स ज्ञानी तस्य जीवस्य देहभेदेन भेदं न करोति । तथाहि । योऽसौ
वीतरागस्वसंवेदनज्ञानी निश्चयस्य निश्चयरत्नत्रयलक्षणपरमात्मनो वा भक्त : तस्येदं लक्षणं
जानिहि । हे प्रभाकरभट्ट । क्वापि देहे तिष्ठतु जीवस्तथापि शुद्धनिश्चयेन षोडशवर्णिका-
सुवर्णवत्केवलज्ञानादिगुणैर्भेदं न करोतीति । अत्राह प्रभाकरभट्टः । हे भगवन् जीवानां यदि
देहभेदेन भेदो नास्ति तर्हि यथा केचन वदन्त्येक एव जीवस्तन्मतमायातम् । भगवानाह ।
शुद्धसंग्रहनयेन सेनावनादिवज्जात्यपेक्षया भेदो नास्ति व्यवहारनयेन पुनर्व्यक्त्यपेक्षया वने
भिन्नभिन्नवृक्षवत् सेनायां भिन्नभिन्नहस्त्यश्वादिवद्भेदोऽस्तीति भावार्थः ।।९५।।
निश्चयरत्नत्रस्वरूप परमात्मानो भक्त छे तेनुं हे प्रभाकरभट्ट! आ लक्षण जाण के ते, जीव
गमे ते देहमां रह्यो होय, तोपण शुद्धनिश्चयनयथी सोळवला सोनानी माफक (जेम सोळवला
सोनामां वानभेद नथी तेम) केवळज्ञानादि (अनंत) गुणोनी अपेक्षाथी (समान होवाथी) तेमां
भेद करतो नथी.
आवुं कथन सांभळीने प्रभाकरभट्ट प्रश्न करे छे के, हे भगवान! जो जीवोमां
देहना भेदथी भेद नथी तो जेवी रीते कोई एक कहे छे के ‘एक ज जीव छे’ तेनो मत
सिद्ध थशे?
त्यारे भगवान योगीन्द्रदेव कहे छे के शुद्धसंग्रहनयथी सेना, वनादिनी माफक जाति-
अपेक्षाए जीवोमां भेद नथी पण व्यवहारनयथी व्यक्तिनी अपेक्षाए वनमां जुदां जुदां वृक्षो
छे, सेनामां भिन्न भिन्न हाथी, घोडा आदि छे तेम जीवोमां भेद छे, एवो भावार्थ
छे. ९५.
प्रभाकरभट्ट तू निःसंदेह जान, जो किसी शरीरमें कर्मके उदयसे जीव रहे, परंतु निश्चयसे शुद्ध,
बुद्ध (ज्ञानी) ही है । जैसे सोनेमें वान – भेद है, वैसे जीवोंमें वान – भेद नहीं है, केवलज्ञानादि
अनंत गुणोंसे सब जीव समान हैं । ऐसा कथन सुनकर प्रभाकरभट्टने प्रश्न किया, हे भगवन्,
जो जीवोंमें देहके भेदसे भेद नहीं है, सब समान हैं, तब जो वेदान्ती एक ही आत्मा मानते
हैं, उनको क्यों दोष देते हो ? तब श्रीगुरु उसका समाधान करते हैं, — कि शुद्धसंग्रहनयसे सेना
एक ही कही जाती है, लेकिन सेनामें अनेक हैं, तो भी ऐसे कहते हैं, कि सेना आयी, सेना
गयी, उसी प्रकार जातिकी अपेक्षासे जीवोंमें भेद नहीं हैं, सब एक जाति हैं, और व्यवहारनयसे
व्यक्तिकी अपेक्षा भिन्न – भिन्न हैं, अनंत जीव हैं, एक नहीं है । जैसे वन एक कहा जाता है,
और वृक्ष जुदे जुदे हैं, उसी तरह जातिसे जीवोंमें एकता है, लेकिन द्रव्य जुदे जुदे हैं, तथा
जैसे सेना एक है, परन्तु हाथी, घोड़े, रथ, सुभट अनेक हैं, उसी तरह जीवोंमें जानना ।।९५।।