Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 102 (Adhikar 2).

< Previous Page   Next Page >


Page 387 of 565
PDF/HTML Page 401 of 579

 

background image
अधिकार-२ः दोहा-१०२ ]परमात्मप्रकाशः [ ३८७
अथ जीवानां निश्चयनयेन योऽसौ देहभेदेन भेदं करोति स जीवानां दर्शन-
ज्ञानचारित्रलक्षणं न जानातीत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा सूत्रमिदं कथयति
२२९) देहविभेयइँ जो कुणइ जीवइँ भेउ विचित्तु
सो णवि लक्खणु मुणइ तहँ दंसणु णाणु चरित्तु ।।१०२।।
देहविभेदेन यः करोति जीवानां भेदं विचित्रम्
स नैव लक्षणं मनुते तेषां दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् ।।१०२।।
देह इत्यादि देह-विभेयइँ देहममत्वमूलभूतानां ख्यातिपूजालाभस्वरूपादीनां अपध्यानानां
विपरीतस्य स्वशुद्धात्मध्यानस्याभावे यानि कृतानि कर्माणि तदुदयजनितेन देहभेदेन जो कुणइ
यः करोति
कम् जीवइं भेउ विचित्तु जीवानां भेदं विचित्रं नरनारकादिदेहरूपं सो णवि
हवे, निश्चयनयथी जे देहना भेदथी जीवोना भेद करे छे ते जीवोनुं दर्शन
-ज्ञान-चारित्रलक्षण जाणतो नथी एवो अभिप्राय मनमां राखीने आ गाथासूत्र कहे छेः
भावार्थदेहना ममत्वनुं मूळ कारण जे ख्याति-पूजा-लाभस्वरूप आदि अपध्यानो,
(आर्तरौद्रस्वरूप माठां ध्यानो) तेमनाथी विपरीत, स्वशुद्धात्मध्यानना अभावमां जे कर्मो उपार्जित
कर्यां होय तेमना उदयथी उत्पन्न देहना भेदथी जीवोनां नर-नारकादि देहरूप अनेक प्रकारना भेदने
जे करे छे ते, जीवोनुं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र लक्षण छे एम जाणतो नथी.
आगे जीव ही को जानते हैं, परंतु उसके लक्षण नहीं जानते, वह अभिप्राय मनमें रखकर
व्याख्यान करते हैं
गाथा१०२
अन्वयार्थ :[यः ] जो [देहविभेदेन ] शरीरोंके भेदसे [जीवानां ] जीवोंका
[विचित्रम् ] नानारूप [भेदं ] भेद [करोति ] करता है, [स ] वह [तेषां ] उन जीवोंका [दर्शनं
ज्ञानं चारित्रम् ] दर्शन-ज्ञान-चारित्र [लक्षणं ] लक्षण [नैव मनुते ] नहीं जानता, अर्थात् उसको
गुणोंकी परीक्षा (पहचान) नहीं है
भावार्थ :देहके ममत्वके मूल कारण ख्याति (अपनी बड़ाई) पूजा और लाभरूप
जो आर्त रौद्रस्वरूप खोटे ध्यान उनसे निज शुद्धात्माका ध्यान उसके अभावसे इस जीवने
उपार्जन किये जो शुभ-अशुभ कर्म उनके उदयसे उत्पन्न जो शरीर है, उसके भेदसे भेद मानता
है, उसको दर्शनादि गुणोंकी गम्य नहीं है
यद्यपि पापके उदयसे नरकयोनि, पुण्यके उदयसे