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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-१०७
एक्कु करे इत्यादि पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते । एक्कु करे सेनावनादि-
वज्जीवजात्यपेक्षया सर्वमेकं कुरु । मण बिण्णि करि मा द्वौ कार्षीः । मं करि वण्ण-विसेसु
मनुष्यजात्यपेक्षया ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्रादि वर्णभेदं मा कार्षीः, यतः कारणात् इक्कइं देवइं
एकेन देवेन अभेदनयापेक्षया शुद्धैकजीवद्रव्येण जे येन कारणेन वसह वसति । किं कर्तृं ।
तिहुयणु त्रिभुवनं त्रिभुवनस्थो जीवराशिःएहु एषः प्रत्यक्षीभूतः । कतिसंख्योपेतः । असेसु अशेषं
समस्तं इति । त्रिभुवनग्रहणेन इह त्रिभुवनस्थो जीवराशिर्गृह्यते इति तात्पर्यम् । तथाहि ।
लोकस्तावदयं सूक्ष्मजीवैर्निरन्तरं भृतस्तिष्ठति । बादरैश्चाधारवशेन क्वचित् क्वचिदेव त्रसैः
भावार्थः — प्रथम तो आ लोक सूक्ष्म जीवोथी निरंतर (बधी जगाए) भर्यो पड्यो
छे. (सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म जळकाय, सूक्ष्म अग्निकाय, सूक्ष्म वायुकाय, सूक्ष्म नित्यनिगोद,
सूक्ष्म इतरनिगोदि — आ छ प्रकारना सूक्ष्म जीवोथी समस्त लोक निरंतर भरेलो रहे छे)
अने ते आधारवशे (रहेला) बादर जीवोथी लोकमां क्यांक, क्यांक भरेलो छे, त्रस जीवोथी
पण क्यांक, क्यांक भरेलो छे. (बादर पृथ्वीकाय, बादर जळकाय, बादर अग्निकाय, बादर
वायुकाय, बादर नित्यनिगोद, बादर इतरनिगोद अने प्रत्येक वनस्पति ज्यां आधार छे त्यां
छे, तेथी क्यांक होय छे क्यांक नथी होता छतां ते घणा स्थळोमां छे. आ रीते स्थावर
जीवो तो त्रण लोकमां छे, अने द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, तिर्यंच, ए
मध्यलोकमां ज छे, अधोलोक अने ऊर्ध्वलोकमां नथी. तेमांथी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय
जीव कर्मभूमिमां ज छे, भोगभूमिमां नथी. तेमांथी भोगभूमिमां गर्भज पंचेन्द्रिय संज्ञी
[मा द्वौ कार्षीः ] इसलिये राग और द्वेष मत कर, [वर्णविशेषम् ] मनुष्य जातिकी अपेक्षा
ब्राह्मणादि वर्ण - भेदको भी [मा कार्षीः ] मत कर, [येन ] क्योंकि [एकेन देवेन ] अभेदनयसे
शुद्ध आत्माके समान [एतद् अशेषम् ] ये सब [त्रिभुवनं ] तीनलोकमें रहनेवाली जीव - राशि
[वसति ] ठहरी हुई है, अर्थात् जीवपनेसे सब एक हैं ।
भावार्थ : — सब जीवोंकी एक जाति है । जैसे सेना और वन एक है, वैसे जातिकी
अपेक्षा सब जीव एक हैं । नर-नारकादि भेद और ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्रादि वर्ण - भेद सब
कर्मजनित हैं, अभेदनयसे सब ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्रादि वर्ण – भेद सब कर्मजनित हैं,
अभेदनयसे सब जीवोंको एक जानो । अनंत जीवोंकर वह लोक भरा हुआ है । उस जीव
– राशिमें भेद ऐसे हैं — जो पृथ्वीकायसूक्ष्म, जलकायसूक्ष्म, अग्निकायसूक्ष्म, वायुकायसूक्ष्म,
नित्यनिगोदसूक्ष्म, इतरनिगोदसूक्ष्म — इन छह तरहके सूक्ष्म जीवोंकर तो यह लोक निरन्तर भरा
हुआ है, सब जगह इस लोकमें सूक्ष्म जीव हैं । और पृथ्वीकायबादर, जलकायबादर,
अग्निकायबादर, वायुकायबादर, नित्यनिगोदबादर, इतरनिगोदबादर और प्रत्येकवनस्पति — ये