Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 112 (Adhikar 2) Indriyoma Lapatayel Jivano Vinash.

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अधिकार-२ः दोहा-११२ ]परमात्मप्रकाशः [ ४०७
२४२) रूवि पयंगा सद्दि मय गय फासहिँ णासंति
अलिउल गंधइँ मच्छ रसि किम अणुराउ करंति ।।११२।।
रूपे पतङ्गाः शब्दे मृगाः गजाः स्पर्शैः नश्यन्ति
अलिकुलानि गन्धेन मत्स्याः रसे किं अनुरागं कुर्वन्ति ।।११२।।
रूवि इत्यादि रूपे समासक्ताः पतङ्गाः शब्दे मृगा गजाः स्पर्शैः गन्धेनालिकुलानि मत्स्या
रसासक्ता नश्यन्ति यतः कारणात् ततः कारणात्कथं तेषु विषयेष्वनुरागं कुर्वन्तीति तथाहि
पञ्चेन्द्रियविषयाकांक्षाप्रभृतिसमस्तापध्यानविकल्पै रहितः शून्यः स्पर्शनादीन्द्रियकषायातीतनिर्दोषि-
परमात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपनिर्विकल्पसमाधिसंजातवीतरागपरमाह्लादैकलक्षणसुखामृतरसास्वादेन
पूर्ण कलशवद्भरितावस्थः केवलज्ञानादिव्यक्ति रूपस्य कार्यसमयसारस्योत्पादकः शुद्धोपयोगस्वभावो
भावार्थपांच इन्द्रियना विषयोनी आकांक्षाथी मांडीने समस्त अपध्यानना विकल्पोथी
रहित-शून्य (खाली), स्पर्शनादि इन्द्रिय विषयकषायथी अतीत एवा निर्दोष परमात्मानां सम्यक्
श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान, सम्यग् अनुचरणरूप निर्विकल्प समाधिथी उत्पन्न वीतराग परम आह्लाद
जेनुं एक लक्षण छे एवा सुखामृतरसना आस्वादथी, पूर्ण छलोछल भरेला कळशनी जेम
परिपूर्ण, केवळज्ञानादिनी व्यक्तिरूप कार्यसमयसारनो उत्पादक एवो ज शुद्धोपयोगस्वभाव कारण
गाथा११२
अन्वयार्थ :[रूपे ] रूपमें लीन हुए [पतंगा ] पतंग जीव दीपकमें जलकर मर जाते
हैं, [शब्दे ] शब्द विषयमें लीन [मृगाः ] हिरण व्याधके बाणोंसे मारे जाते हैं, [गजाः ] हाथी
[स्पर्शैः ] स्पर्श विषयके कारण गड्ढेमें पड़कर बाँधे जाते हैं, [गंधेन ] सुगंधकी लोलुपतासे
[अलिकुलानि ] भौंरे काँटोंमें या कमलमें दबकर प्राण छोड़ देते और [रसे ] रसके लोभी
[मत्स्याः ] मच्छ [नश्यंति ] धीवरके जालमें पड़कर मारे जाते हैं
एक एक विषय कषायकर
आसक्त हुए जीव नाशको प्राप्त होते हैं, तो पंचेन्द्रिका कहना ही क्या है ? ऐसा जानकर विवेकी
जीव विषयोंमें [किं ] क्या [अनुरागं ] प्रीति [कुर्वंति ] करते हैं ? कभी नहीं करते
भावार्थ :पंचेन्द्रियके विषयोंकी इच्छा आदि जो सब खोटे ध्यान वे ही हुए विकल्प
उनसे रहित विषय कषाय रहित जो निर्दोष परमात्मा उसका सम्यक् श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप
जो निर्विकल्प समाधि, उससे उत्पन्न वीतराग परम आहलादरूप सुख
अमृत, उसके रसके
स्वादकर पूर्ण कलशकी तरह भरे हुए जो केवलज्ञानादि व्यक्तिरूप कार्यसमयसार, उसका
१. पाठान्तरःस्पर्शैः = स्पर्शे.