Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 19-21 (Adhikar 1).

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के ‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु ’’ (अर्थपरमार्थनयथी सदा शिवने नमस्कार हो.)
वळी कह्युं पण छे के‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ (अर्थजे शिवरूप, परमकल्याणरूप, निर्वाणरूप, शांत, अक्षय छे अने जेणे
मुक्तिपद प्राप्त कर्युं छे ते शिव छे.) ‘‘एक जगत्कर्ता, सर्वव्यापी, सदा मुक्त, शांत, शिव
छे’’ एम अन्य कोईपण माने छे, पण एम नथी.
अहीं आ ज शांत शिवसंज्ञावाळो शुद्ध आत्मा ज उपादेय छे एवो भावार्थ
छे. १८.
हवे पूर्वोक्त निरंजनस्वरूपने त्रण सूत्रोथी प्रगट करे छेः
शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन शक्ति रूपेणेति तथा चोक्त म्‘‘परमार्थनयाय सदा शिवाय नमोऽस्तु’’
पुनश्चोक्त म्‘‘शिवं परमकल्याणं निर्वाणं शान्तमक्षयम् प्राप्तं मुक्ति पदं येन स शिवः
परिकीर्तितः ।।’’ अन्यः कोऽप्येको जगत्कर्ता व्यापी सदा मुक्त : शान्तः शिवोऽस्तीत्येवं न
अत्रायमेव शान्तशिवसंज्ञः शुद्धात्मोपादेय इति भावार्थः ।।१८।।
अथ पूर्वोक्तं निरञ्जनस्वरूपं सूत्रत्रयेण व्यक्तीकरोति
१९) जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सद्दु ण फासु
जासु ण जम्मणु मरणु णवि णाउ णिरंजणु तासु ।।१९।।
२०) जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु
जासु ण ठाणु ण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु ।।२०।।
२१) अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ
अत्थि ण एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ ।।२१।। तियलं
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योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-१९-२१
हैं, व्यक्तिरूपसे नहीं है ऐसा कथन अन्य ग्रंथोंमें भी कहा है‘शिवमित्यादि’ अर्थात्
परमकल्याणरूप, निर्वाणरूप, महाशांत अविनश्वर ऐसे मुक्ति-पदको जिसने पा लिया है, वही
शिव है, अन्य कोई, एक जगत्कर्ता सर्वव्यापी सदा मुक्त शांत नैयायिकोंका तथा वैशेषिक
आदिका माना हुआ नहीं है
यह शुद्धात्मा ही शांत है, शिव है, उपादेय है ।।१८।।
आगे पहले कहे हुए निरंजनस्वरूपको तीन दोहा-सूत्रोंसे प्रगट करते हैं